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अपनी सुधि भूलि आप
- पण्डितप्रवर दौलतराम
अपनी सुधि भूलि आप, आप दुख उपायौ । शुक नभ चाल विसरि, नलिनी लटकायौ ॥ अपनी ॥
चेतन अविरुद्ध शुद्ध, दरश बोधमय विशुद्ध । तजि जड रत फरस रूप, पुद्गल अपनायौ ॥ अपनी. ॥
इन्द्रिय सुख दुख में नित्त, पाग राग रुख में चित्त । दायक भव विपति वृन्द, बन्ध कौ बढ़ायौ ॥ अपनी ॥
चाह दाह दाह, त्यागौ न ताह चाहे । समता सुधान गाहै, जिन प्रकट जो बतायौ ॥ अपनी ॥
मानुष भव सुकुल पाय, जिनवर शासन लहाय । "दौल" निज स्वभाव भज, अनादि जो न ध्यायौ | अपनी. ॥