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________________ 62 अनेकान्त/55/1 उत्तरवर्ती काल में तो अनेक श्रावकाचार लिखे गये। इनका संग्रह जीवराज ग्रंथमाला, सोलापुर से प्रकाशित हुआ हैं। ___ मध्यवर्ती युग में दिगंबर पडितों ने, तेरहवीं सदी में आशाधर ने एवं 15--16 वीं सदी में बनारसीदास और टोडरमल ने कुछ साहित्य लिखा। उन्होंने पं. कैलाशचंद्र शास्त्री का नाम लेते हुए यह कहा है कि पिछले सौ वर्षों मे पाठशालाओं में पढ़े हुए दिगंबर पंडितों ने बहुत बौद्धिक काम किया है। लेकिन उनका काम हिन्दी में होने से पश्चिम जगत ने उसे मान्यता नहीं दी। साथ ही, दिगंबर जैनों का अध्ययन भी, श्वेतांबरो के समान गंभीरता से नही किया गया। इसलिये वे प्रायः विस्मृत से बने रहे। तथापि, इन पंडितों ने पश्चिमी विद्वानो के समान समीक्षात्मक एवं स्वतंत्र विचारकता की दृष्टि रही है। तथापि, अनेक प्रश्न ऐसे हैं (जैसे तत्वार्थ सूत्र के कर्ता अथवा भक्तामर स्तोत्र के रचयिता) जिनमें सांप्रदायिक दृष्टिकोण भी पाया जाता है जिसे दूर करना कठिन ही प्रतीत होता हैं, इस दृष्टि से, जैन विद्वानों के साहित्य का अध्ययन गंभीरता से करना चाहिये। फिर भी. विदेशी विद्वान् यह मानते हैं कि जैनों ने दो बातों को प्रमाण माना है- (1) आगम और (2) तर्क। आगमों को तर्क के अनुरूप होना चाहिये, पर प्रमुखता आगमों की है। लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि जैनों की प्रतिष्ठा एवं सम्मान के लिये बौद्धिक संपदा को समृद्ध करना आवश्यक है। अभी उनकी प्रतिष्ठा का मूल आधार प्राचीन जैन बौद्धिक साहित्य है। उन्हाने वर्तमान जैन विद्वत्ता को पुरातन विद्वानों के समकक्ष नही माना हैं, फलतः उनके गिरते हुए स्तर पर निराशा व्यक्त की है और उसे उन्नत करने के लिये विदेश में विशेषकर लंदन को केन्द्र बनाकर उसे आर्थिक दृष्टि से स्वावलंबी बनाने की आशा व्यक्त की है। इसकी चर्चा करते समय उन्होंने पं. सुखलालजी, मालवणियाजी, बेचरदास जी, मुनि जंबू विजय, पुण्य विजय या जिन विजय जी की विद्वत्ता की सराहना की है। इन विद्वानों में इनके समकक्ष किसी दिगंबर विद्वान् या साधु का नाम नही है। यह दिगंबर जैनधर्म के प्रति पश्चिम की अनभिज्ञता ही व्यक्त करती हैं। हमारे यहां भी राष्ट्रपति-सम्मानित कोठिया जी, फूलचंदजी, पं. महेन्द्र कुमार
SR No.538055
Book TitleAnekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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