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________________ 54 अनेकान्त / 55/1 आत्मनिर्भरता जैन परम्परा मे आत्म पुरुषार्थ और आत्म-पराक्रम के रूप में फलित हुई। अतः साधना के क्षेत्र में श्रम एवं पुरुषार्थ की विशेष प्रतिष्ठा है। यही कारण है कि व्यक्ति श्रम से परमात्म दशा प्राप्त कर लेता है। उपासकदशांगसूत्र में भगवान महावीर और कुम्भकार सद्दालपुत्र का जो प्रसंग वर्णित है, उससे स्पष्ट होता है कि गोशालिक का आजीवक मत नियतिवादी है तथा भगवान महावीर का मत श्रम निष्ठ आत्म पुरुषार्थ और आत्मपराक्रम को ही अपना उन्नति का केन्द्र बनाता है। 3. धर्म के तीन लक्षण माने गये हैं- अहिंसा, संयम और तप । ये तीनों ही दुःख के स्थूल कारण पर न जाकर दुःख के सूक्ष्म कारण पर चोट करते हैं। मेरे दुःख का कारण कोई दूसरा नहीं स्वयं मैं ही हूं। अत: दूसरे को चोट पहुंचाने की बात न सोचूं-यह अहिंसा है। मित्ती में सव्वभूएस' इसे सार्वजनिक बनाना होगा। अपने को अनुशासित करूं यह संयम है। अतः दुखों से उद्वेलित होकर अविचारपूर्वक होने वाली प्रतिक्रिया न करूँ। इसे परीषह जय भी कहते हैं। तथा दुःख के प्रति स्वेच्छा से प्रतिकूल परिस्थिति को आमन्त्रित करना तप है। अत: अहिंसा, संयम ओर तप रूप इन तीनों उत्कृष्ट मंगल के प्रति हमारी प्रवृति सम रूप रहे। अपने आपको प्रतिकूल परिस्थितियों की उसता से मुक्त बनाये रखें और सब प्रकार की परिस्थितियों में अपना समभाव बना रहे। क्योंकि “समया धम्मुदाहरे मुणी"" अर्थात् अनुकूलता में प्रफुल्लित न होना और प्रातकूलता मे विचितलत न होना समता है। ऐसी सूक्ष्म दृष्टि रखने पर सामाजिक प्रवृत्ति समतापूर्वक की जा सकती है। 4. आधुनिक समाज की रचना श्रम पर आधारित होते हुए भी संघर्ष और असन्तुलन पूर्ण हो गयी है। जीवन में श्रम की प्रतिष्ठा होने पर जीवन - निर्वाह की आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन और विनिमय प्रारम्भ हुआ । अर्थ - लोभ ने पूंजी को बढ़ावा दिया। फलतः आद्योगीकरण, यंत्रवाद यातायात, दूरसंचार तथा अत्याधुनिक भौतिकवाद के हावी हो जाने से उत्पादन और वितरण में असंतुलन पैदा हो गया। समाज की रचना में एक वर्ग ऐसा बन गया जिसके पास आवश्यकता से अधिक पूंजी और भौतिक संसाधन जमा हो गये तथा दूसरा वर्ग ऐसा बना जो जीवन-निर्वाह की आवश्यकता को भी पूरा करने में असमर्थ
SR No.538055
Book TitleAnekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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