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________________ अनेकान्त/55/1 मृदुलता अंकित हैं। निकट ही नतशीश हैं उनके ज्येष्ठ पुत्र चक्रवर्ती भरत, जो उष्णीय धारण किए हुए राजसी ठाठ में हैं। वे भगवान के चरणों में अंजलिबद्ध भक्तिपूर्वक नतमस्तक हैं। उनके पीछे वृषभ (बैल) हैं, जो ऋषभदेव का लांछन (चिन्ह) है। अधोभाग में सात प्रधान अमात्य हैं, जो तत्कालीन राजसी गणवेश में पदानुक्रन से पंक्तिबद्ध हैं। पउमचरियं' छक्खंडा-मंगलायरण', आदिपुराण' आदि की कारिकाओं/गाथाओं में जो वर्णन मिलते है, उनमें तथा उक्त सील में बिम्ब-प्रतिबिंब भाव देखा जा सकता है। इन व्याख्याओं के निरीक्षण से इस तरह की सील या मुद्रा के प्रचलन की व्यापकता का मत मजबूत होता है, क्योंकि मोहनजोदड़ो की सील में अंकित आकृतियों तथा जैन साहित्य में उपलब्ध वर्णनों का यह सामय आकस्मिक नहीं हो सकता अवश्य ही यह एक अविछिन्न परंपरा की ठोस परिणति है। मुहर की कल्पवृक्ष तथा मृदुलता की आकृतियों का विवरण इस प्रकार हैदो ऊर्ध्वगं कल्पवृक्ष-शाखाएं हैं पुष्प-फल-युक्त, महायोगी ऋषभदेव उससे परिवेष्टित हैं, यह भक्ति-प्राप्य फल का द्योतक है ' चक्रवर्ती भरत भगवान के चरणों में अंजलिबद्ध प्रणाम मुद्रा में नतशीश हैं। कोमलदिव्यध्वनि के प्रतीक रूप एक लता-पर्ण मुखमंडल के पास सुशोभित है। ' अधोभाग में हैं, अपने राजकीय गणवेश में सात मंत्री, जिनके पदनाम हैं 4 :-मांडलिक राजा, ग्रामाधिपति, जनपद-अधिकारी, दुर्गाधिकारी (गृहमंत्री), भंडारी (कृषि वित्त मंत्री), षडंग बलाधिकारी (रक्षामंत्री), मित्र (परराष्ट्र मंत्री)। सिंधघाटी से प्राप्त कछ सीलों में स्वस्तिक (साथिया) भी उपलब्ध है, निष्कर्षतः तत्कालीन लोकजीवन में स्वस्तिक एक मांगलिक प्रतीक था। साथिया जैनों में व्यापक रूप में पूज्य और प्रचलित है। 2 स्वस्तिक जैन जीव-सिद्धान्त का भी प्रतीक है। इसे चतुर्गति का सूचक माना गया है। जीव की चार गतियां वर्णित हैं: नरक, निर्यच, मनुष्य और देव। 'स्वस्तिक' का एक अर्थ कल्याण भी है। पौराणिक परंपरा में ऋषि और मनि - वैदिक परंपरा का आदर्श पुरुष ऋषि, तथा जैनधर्म के नियम, आचार व सिद्धान्त का आदर्श रीति से पालन
SR No.538055
Book TitleAnekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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