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________________ भगवान् ऋषभदेव एवं श्रमण परंपरा : महत्वपूर्ण गणितीय एवं ऐतिहासिक पक्ष ___ - डॉ. अभय प्रकाश जैन श्रमण परम्परा की प्राचीनता अब पूर्णतः सर्वमान्य हो चुकी है। इसमें सर्वप्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के अनेक प्रकरण भारत के प्राचीनतम ग्रंथों में तथा पुरातत्व सामग्री में अनेक शोध-पत्रों के विषय बन चुके हैं। अभिनावावधि में प्रकाशित जैन द्रव्यानुयोग एवं करणानुयोग ग्रंथों में प्राप्य सामग्री उक्त काल एवं युगों की उच्चतम सभ्यता, ज्ञान, विज्ञान की अनुपम झलक देती है। प्रस्तुत पत्र में शोध शैली में एतद्संबंधी नवीनतम गणितीय एवं ऐतिहासिक पुरातत्व संबंधी प्रकाश डाला गया है। श्रमण संस्कृति के आदीश-जिन प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभदेव की ऐतिहासिकता पुरातात्त्विक प्रमाणों एवं ऋग्वेदादि प्राचीनतम वैदिक ग्रंथों में सादर उल्लेख के प्रकाश में सिद्ध व स्थापित हो चुकी है। सिंधु-हड़प्पा सभ्यता में गणित के प्रयोग मोहनजोदडों में (पुरातत्त्व संबंधी खुदाई के फलस्वरूप) अनुसंधान हुए हैं। खुदाई का कार्य इस प्रकार प्रारंभ हुआ। स्व. राखालदास बेनर्जी पुरातत्व विभाग के उच्च पदाधिकारी थे। वे पाँच वर्षों तक लगातार सिकंदर के द्वारा भारत में बनवाए हुए बारह स्तंभों को ढूंढने में लगे हुए थे। 1922 के शीतकाल में रास्ता भूल जाने के कारण घोड़े पर सवार वह एक टीले पर जा पहुंचे। उन्हें वहां प्राचीन प्रकार का एक चाकू प्राप्त हुआ। अनुमान लगाया गया कि कोई पुरानी सभ्यता भूमि में नीचे दबी है। उन्होंने खुदाई प्रारंभ की। 1925 में सर जॉन मार्शल की देखरेख में और खुदाई हुई। 1931 तक ई. जे. मइके भी इस कार्य में लगे रहे। यह मोहनजोदड़ो की खुदाई थी। यहाँ पता चला कि ईसा के लगभग 3000 वर्ष पूर्व सिंध के निवासी हिन्दू लोग खास माप की ईटों के मकान बनाते थे। नगरों का गणितीय-यांत्रिक विधि से नियोजन करते थे। वे
SR No.538055
Book TitleAnekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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