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________________ अनेकान्त-55/4 आम्रफल को कृत्रिम गर्मी से पका लिया जाता है। इससे यह स्पष्ट है कि सर्वकार्य काल के अनुसार ही होते हैं ऐसा नहीं है क्योंकि जहाँ काल के आधार पर कार्य सिद्धि बतायी है, वहीं अकाल में भी कार्य होता है ऐसा सर्वज्ञ का कथन है। यही प्रामाणिक है। अनेक पौराणिक कथनों के आधार पर आय् के अपकर्षकरण का स्पष्टीकरण हो जाता है। लौकिक उदाहरण से भी ममझा जा सकता है। जैसे मोटर गाड़ी की तेल की टंकी पूरी भरी हुई है, उसके द्वारा हजार मील की यात्रा पूरी हो सकती है, किन्तु गाड़ी चार सौ मील चलकर रुक गयी। जब कारण पर विचार किया गया तब पता चली कि टंकी मे सुराख हो जाने से तेल क्षय को प्राप्त हो गया। अत: गाड़ी समय से पूर्व वन्द हो गई। यात्रा भी पूरी न करा सकी इसी प्रकार आयु कर्म भी किसी बाह्म या अन्तरंग निमित्त को पाकर समय से पूर्व क्षय को प्राप्त हो जाता है। ___ यहाँ यह स्पष्ट किया गया है कि बध्यमान आय की स्थिति में और अनुभाग में जिस प्रकार अपवर्तन होता है, उसी प्रकार भुज्यमान आयु की स्थिति और अनुभाग में भी अपवर्तन होता है किन्तु बध्यमान आयु की उदीरणा नहीं होती और भुज्यमान आयु की उदीरणा होती है, जिससे अकालमरण भी होता है, यह उक्त अनेकों प्रमाणों से सिद्ध होता है। । अणणाठयम्मृदय मथुहणमुदीरणा ह अस्थि त। गा कम गा 43) उदमाल बाहस्थितस्थिति द्रव्यम्यापकर्पणवशादृदयावतया निक्षपणमदीरणा खुला ? अपक्वपाचनमदारणा। 3 परभवायुषा नियमनादीरणा नाम्ति उदयगतस्यवापपादिकचग्मात्तमदहा मख्यय वर्षायुभ्याऽन्यत्र तत्यभवात्।। गा कर्म गा 918 + तन्वार्थवार्तिक प्रथम भाग : 427,28 ( आर्यिका सुपावति कन टीका)। 5 न मप्राप्नकालग्य मग्णाभाव. खड्गप्रहादिभिर्मग्णम्य दर्शनाता प्राप्त कालम्यव तम्य तथा दर्शनमिति चत 6 पुनरयों काल प्राप्नाऽपमृत्युकालवार प्रथमपक्ष मिद्धमाध्यता, द्वितीय पक्ष खड्गप्रहादिनिरपेक्षत्त्व प्रसगः मकलबहि. कारणविशष निरपक्षम्य मृत्यकारणम्य मृत्युकाल व्यवस्थित, शस्त्रमपानादि बहिरगकारणान्वय व्यतिरकान्विधायिनम्तम्यापमृत्युकालत्वोपत्नः। तदभाव पनरायवेद प्रामाण्यचिकित्मादीना क्व मामोपयोगाः। -तन्वार्थवार्तिक, 2/53 की टीका {, विपवयणरतक्खय भयमन्थग्गहण सकिलेहि। उम्पामाहागण णिगहणा छिज्जद आऊ।। - कर्मकाण्ड, 57 7 पढम असतवयण मदत्थम्म हादि पडिमेहा। त्थि परम्स अकाल मच्चति जधयमादीय।। - भग 830 गाथा -रीडर-संस्कृत विभाग दि. जैन कॉलेज, बड़ौत
SR No.538055
Book TitleAnekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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