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________________ अनेकान्त-55/4 उदीरणा कहते हैं।(2) उदीरणा भुज्यमान आयु की ही हो सकती है क्योंकि गोम्मटसार कर्मकाण्ड मे बध्यमान आयु की उदीरणा का “परभव आउगस्स च उदीरणा णत्थि णियमेण" इस नियम के आधार से स्पष्ट निषेध किया गया है। यह भी कहा है कि देव नारकी, चरमोत्तम देह के धारक असंख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्य तिर्यञ्च को छोड़कर बाकी के उदयगत आयु की उदीरणा संभव नहीं है।(3) सभी कर्मों की उदीरणा अपकर्षण होने पर ही होती है। जब तक कर्म के द्रव्य की स्थिति का अपकर्षण नहीं होगा, तब तक उस द्रव्य का उदयावली में क्षेपण नहीं हो सकता। जो कर्म अधिक समय तक उदय में आता रहेगा, वह उदयावली में प्रक्षिप्त होने पर उदय में आकर नष्ट हो जायेगा। यह अपकर्षण के बिना नहीं हो सकता। भट्टाकलंक देव ने औपपादिक जन्म वाले देव-नारकी, चरमोत्तम देह धारी और असंख्यात वर्षायुष्क को अनपवर्त्य आयु वाले अर्थात् कालमरण को प्राप्त होने वाले बताकर स्पष्ट कर दिया है कि जिनकी आयु संख्यात वर्ष की होती है ऐसे कर्मभूमियां मनुष्य और तिर्यञ्च अपवर्त्य अर्थात् अकालमरण को प्राप्त हो सकते हैं, उन्होंने लिखा है “अप्राप्तकालस्य मरणानुपलब्धेरपवर्ताभाव इति चेत्, न, दृष्टत्वादाम्रफलादिवत्। यथा अवधारितपाककालात प्राक सोपायोपक्रमे सत्याम्र-फलादीनां दृष्टपाकस्तथा परिच्छिन्नमरणकालात् प्रागुदीरणा प्रत्यय आयुषो भवत्यपवर्तः'। अर्थात् अप्राप्तकाल में मरण की अनुपलब्धि होने से अकालमरण नहीं है, ऐसा नहीं कहना क्योंकि फलादि के समान। जैसे कागज आदि उपायों के द्वारा आम्र आदि फल अवधारित (निश्चित) परिपाक काल के पूर्व ही पका दिए जाते हैं या परिपक्व हो जाते हैं, ऐसा देखा जाता है-उसी प्रकार परिच्छिन्न (अवधारित) मरणकाल के पूर्व ही उदीरणा के कारण से आयु की उदीरणा होकर अकालमरण हो जाता है। (तत्त्वार्थकार्तिक 2/52 की टीका) आचार्यवर्य आगे इसी को सिद्ध करने के लिए और प्रमाण देते हैं वे कहते हैं कि आयुर्वेद के सामर्थ्य से अकालमरण सिद्ध होता है, जैसे अष्टांग आयुर्वेद को जानने वाला अति निपुण वैद्य यथाकाल वातादि के उदय पूर्व ही वमन, विरेचन आदि के द्वारा अनुदीर्ण ही
SR No.538055
Book TitleAnekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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