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अनेकान्त-55/4
नियमन करने के लिए समाज व्यवस्था के लिए निम्न बातों पर ध्यान अपेक्षित
है
1. धन संग्रह में अवैध उपायों का सहारा न लें।
2. आजीविका के निमित्त ऐसे व्यवसायों का चयन न करें जो समाज में हिंसा को फैलाते हैं।
3. अर्जन के साथ विसर्जन का भी नियम - धारण करें।
4. अपने व्यापार में लाभांश का प्रतिशत सुनिश्चित कर, उससे अधिक का त्याग करें।
5. अपनी इच्छाओं का परिसीमन करें।
6. अपने अधीनस्थ कर्मचारियों का शोषण न करें।
7. व्यवसाय में प्रामाणिक रहें। अपने कर्त्तव्य के प्रति निष्ठावान् बनें।
8. अनावश्यक वस्तुओं का संग्रह न करें।
9. सन्तोष पूर्वक जीवन-यापन करें।
आचार्य अमितगति ने लिखा है
त्रिदशाः किम. रास्तस्य हस्ते तस्यामरदुमाः ।
निधयो मन्दिरे तस्य सन्तोषो यस्य निश्चितः ॥ - धर्म परीक्षा, 19-71
- जिसके अन्त:करण में सन्तोष अवस्थित है उसके देव, सेवक बन जाते हैं, कल्पवृक्ष उसके हाथ में अवस्थित के समान हो जाते हैं तथा निधियां उसके भवन में निवास करतीं हैं।
वस्तुत: अपरिग्रह की भावना से ही सर्वोदय समाज की कल्पना साकार हो सकती है। अतः भगवान् महावीर का अपरिग्रह दर्शन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अत्यंत उपयोगी है।
विभागाध्यक्ष, जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म-दर्शन विभाग जैन विश्व भारती संस्थान, लाडनूं (राज.)