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________________ अनेकान्त-55/4 विहार किया तथा अपना नाम मुनि बलभद्र घोषित कर दिया। बलभद्र मुनिराज तीर्थराज सम्मेद शिखर की यात्रा का दृढ़ भाव लेकर पहिले गिरनार क्षेत्र की यात्रा पर रवाना हुए और पद विहार करते हुए अलवर नगर में आये। वहां उन पर राज्य के सेवकों की ओर से घोर उपसर्ग किया गया-उन्हें नग्न देख लोगो ने पागल (बावला) कह दिया-तीन दिन ताले में बंद रखा, किंतु उपसर्ग सहन किया-उफ तक नहीं की-ध्यानारूढ़ रहे तथा मन में सोचते रहे कि स्वर्ण तपाने पर ही कुन्दन बनता है। इस संदर्भ में निम्न पद देखिये "बलभदर जी चालिके, आये अलवर सहर। त्यां के ऊपरिराज का अतिबरसायो कहर॥ 199।। कर चाकरी राज की, सहलवार की जात। दुख दीनू मुनिराज दिनातीन पुनिरात। 197।। अज्ञानी मूरखि कही, नागतणा को होय। चलि आयो ई सहर में तीसु उपसर्ग होय॥ 198।। जानि बावलो अति दुख दिये कपडा ल्याकर पहराय। इसी भांतिदुख भुगत्या गुरां, करता सुं सब कहें सुनाय॥ यां के तो कुछ खातिर नहि उपसर्ग के सामो जाय सोनु तप्यासुं सुध होंय, ताब सह्या सुं कुन्दन होय।। मुनिराज की तपस्या के पुण्य प्रभाव से किसी देव की छाया उनके शरीर में प्रवेश की तथा सारा उपसर्ग दूर किया-अलवर के सब पंच लोग मुनिराज के पैरों में पड़े। तपस्वी शिरोमणि ऐसे गुरु पर उपसर्ग होने के कारण प्रायश्चित्त स्वरूप चन्द्रायण व्रत किया गया। अलवर से विहार कर मुनि बलभद्र जी ने राजस्थान में प्रवेश किया। (संभवतः उस समय अलवर राजस्थान में नहीं हो) उनके हृदय में राजस्थान (जयपुर) के मन्दिरों के दर्शन की तीव्र इच्छा थी।
SR No.538055
Book TitleAnekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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