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________________ अनेकान्त/55/3 में प्रकाशन हुआ है। वह भी इतिहास की सामग्री से भिन्न नही है। 2500वे निर्वाण महोत्सव के प्रसंग में 'अनुत्तर योगी महावीर' कृति की समीक्षा करते हुए 'विप मिश्रित लड्डू' शीर्षक से परम्परागत मूल्यों की रक्षा का ऐतिहासिक दस्तावेज प्रस्तुत किया है। इसी प्रकार मूल आगम एवं भाषा विषयक पं. पद्मचन्द्र शास्त्री द्वारा प्रस्तुत आलेख दिगम्बर आगमों के सुम्पष्ट निर्धारण के उन आयामों और मानदण्डों को स्थापित करते हुए मार्गदर्शन करते हैं, जिन पर समस्त दिगम्बर परम्परा और इतिहास की भावी भित्ति खड़ी होगी तथा अध्येता अनुसन्धित्सओं को एक सुनिचित मार्ग निर्धारण करने को मार्ग प्रशस्त करेगा। विडम्बना यह है कि आज कतिपय विद्वत् वर्ग सत्यान्वेपी न होकर अर्थान्वेषी है और अर्थ की लोलुपता सत्य को खोजने म सबसे बड़ी बाधा है यदि ऐसा न होता तो वर्तमान के सभी मनीपी विद्वान प्राकृत विषयक अवधारणा और मृलआगम संपादन/संशोधन विषयक पं. पदमचन्द्र शास्त्री की धारणा से सहमत होते हुए भी उदासीन भाव से असहमत न होते. विद्वत् समुदाय ने अनकान्त के परम्परा पापित सन्दर्भो म भी न्याय का आश्रय नही लिया यह भी विडम्बना और आश्चर्य का विषय है। परन्तु पण्डित पदमचन्द्र शास्त्री ने अदम्य साहस के साथ एकला चलो रे की राह नहीं छोटी और समाज को जरा सोचिए तथा परम्परिम मृल्यों के प्रति अपन आलेखों के माध्यम से सचेत करते रहे। यह बात अलग है कि उनका सत्यान्वयी आवाज नक्कारखान की तृती की तरह विभिन्न हटा क बीच अनपनी कर दी गई लकिन उन्हें इतिहास की अमिट धरोहर बनन में गका जा सकंगा इसकी सम्भावना कम है। क्योंकि इतिहास कालान्तर में नियक्ष सत्याग्रही आर अनकान्त दृष्टि धारक का अपने अतीत के वर्णिम अध्याया म पगिंचन कगना रहता है। इस आलख मं अनकान्त मं पूर्व प्रकाशित श्री गापालाल जी अमर क आलेख का साभार आधार लिया है।
SR No.538055
Book TitleAnekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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