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अनेकान्त/55/3
आज हम सब पढ़े लिखे हैं फिर भी खाने-पीने की वस्तुओं में विवेक नहीं रख रहे हैं। आज होटल संस्कृति को बढ़ावा मिल रहा है। राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय भोज्य पदार्थो की श्रृंखला, डिब्बाबंद भोज्य पदार्थ, फास्टफूड, चाइनीज डिसेस , चाकलेट, आइसक्रीम, सलाद जिसमें न जाने क्या क्या उपयोग होता है, ने हमारे आहार में घुसपैठ कर ली है। हमारी जैन संस्कृति में आचार्यों ने आहार सबंधी एक सुव्यवस्थित/मर्यादित/संयमित एवं स्वास्थ्य वर्धक आचार संहिता दी है जिसका सहजता से पालन किया जा सकता है। हम महिलाओं का विशेष दायित्व है कि आधुनिकता के व्यामोह में अपनी आहार चर्या को न भूलें। पेट को एक संतुलित, नियमित, मर्यादित आहार दें ताकि व्यक्ति स्वस्थ सुखी जीवन बिता सके। आचार्यों ने इस व्यसन को विस्तृत करते हुये बिना छना पानी, रात्रिभोजन, होटल भोजन, रेडीमेड भोजन, दवाईयों आदि के सबंध में विवेक रखने को कहा है।
हमारे जैन आचार्यों, साधुओं, मुनियों, आर्यिकाओं, विद्वानों एवं बुद्धिजीवियों ने इस संबंध में सार्थक प्रयास किये हैं सार्वजनिक मंच से प्रवचन, भाषण, छोटी छोटी किताबें निकाली हैं। इस संबंध में वर्तमान में हमारे आचार्यो मुनियों का समाज पर बहुत बड़ा उपकार है। अपने मार्मिक प्रवचनों के माध्यम से अनेक लोगो का न केवल हृदय परिवर्तन किया वरन् क्या खाये क्या न खाये इस संबंध में भी विवेक जागृत किया है। शराब-नशा :- आचार्यों ने कहा है शराब नशा समस्त पुरुषार्थों को नष्ट कर देता है नशा करने वाला व्यक्ति चारों पुरुषार्थों (अर्थ, काम, धर्म, मोक्ष) में से किसी को भी प्राप्त नहीं कर सकता है, द्वीपायन मुनि द्वारा द्वारका भस्म हो गयी, यह कथानक किसे याद न होगा।
बड़े बड़े समृद्ध परिवार, नशे की वजह से उजड़ते देखे गये हैं परिवार के परिवार नशे की लत में नष्ट हो गये। आज ट्रेफिक की जितनी भी दुर्घटनायें होती हैं अधिकांश नशे में होती है। शराबी व्यक्ति अच्छा-बुरा भक्ष्य-अभक्ष्य दिन-रात का ज्ञान नहीं कर सकता अपना विवेक खो देता है। आए दिन हम शराबियों, नशेड़ियों की विवेक हीनता देखते रहते हैं। शराब के नशे में बेटी