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________________ अनेकान्त/55/3 33 हार जीत की शर्त लगाकर कोई भी खेल खेलना सभी जुआ के अन्तर्गत आते है। मनुष्य ने मनोरंजन के लिये अनेक जुआ रूपी खेलों का अविष्कार कर लिया है। आधुनिक होटल संस्कृति, क्लबों, किटीपार्टियों आदि में इनकी उपस्पिति आवश्यक हो गयी है। नये-नये तर्ज पर बड़े-बड़े कैसीनो (जुआघर) खुल गये हैं जहां परिवार समेत जुआ खेला जाने लगा है। (हर वर्ग के लिये अलग-अलग व्यवस्था)। बदलते परिवेश में जुआ के इतने रूप सामने आ रहे हैं उनसे कहां तक कौन बच पाता है कहना मुश्किल है। ___ जुआ का ही एक रूप लाटरी ने मानव जीवन की जो बर्बादी की है उस पर जितना कहा जाये जितना लिखा जाये कम है। अनेकों घर, बच्चे, परिवार, लाटरी की भेंट चढ़ गये। आज टी.वी. इंटरनेट के माध्यम से विभिन्न प्रतियोगितायें जो सामने आ रही है उनसे न केवल व्यक्ति की कार्यक्षमता प्रभावित हुई है बल्कि अनेक परिवारों की शांति भंग हो गयी है इन्हीं में उलझा व्यक्ति अपने जीवन को भी उलझा रहा है। कौन बनेगा करोड़पति ने ऐसा लालच, नशा पैदा किया कि लोग काम करना, खाना पीना भूल गये बस इस तक पहुँचने की कल्पनाओं में अपना बहुमूल्य समय नष्ट करने में लगे हुए हैं। __जुआ रूपी नशा न केवल हमारी बुद्धि का नाश करता है वरन् धन और अमूल्य समय को भी नष्ट करता है। यूं तो जुआ कानूनन जुर्म भी है पर अपने नये रूपों में कानून को भी मात दे देता है। इस संदर्भ में हम महिलाओं का विशेष दायित्व है। द्रौपदी के कथानक को कैसे भुलाया जा सकता है। नारी जाति के अपमान के मूल में जुआ ही था। द्रौपदी का तो तीव्र पुण्य कर्म का उदय था कि अतिशय प्रगट हुआ और उसका चीर हरण न हो सका पर आज हम किस अतिशय की प्रतीक्षा करेगे! आज हमें स्वयं इस पाप से अपने परिवार को बचाना है ध्यान रखो परिवार के किसी एक व्यक्ति की गलत आदत पूरे परिवार की सुख-शांति भंग कर देती है। हमारे संस्कार, हमारी शिक्षा और हमारे गुरुओं की वाणी ही सही गलत की पहचान कराती है। अतः जुआ रूपी पाप को पास में न फटकने दे।
SR No.538055
Book TitleAnekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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