SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त/55/3 सुप्रसिद्ध साहित्यकार यशपाल जैन ने लिखा है__ भाव हिंसा का विश्लेषण जैन दर्शन की अपनी विशेषता है। उसकी पर्याप्त गवेषणा करते हुए हिंसा के उद्योगी, विरोधी, आरम्भी और संकल्पी ये चार भेद बताकर, यह घोष किया है कि केवल संकल्पी हिंसा का त्याग कर देने पर मनुष्य 'अहिंसक' कहलाने का अधिकारी हो जाता है। यह एक ऐसी दृष्टि है जो 'कायरता' और 'पलायनवाद' जैसे लांछनों से मुक्त करके अहिंसा को समस्त मानवीय मूल्यों का आधार मानते हुए मानवता की धुरी के रूप में स्थापित करती है। भाव अहिंसा का अर्थ है कि बहिरंग क्रिया तो दूर मन में भी हिंसा के भाव ही उत्पन्न नहीं हों। हत्या के साधन को जैसे शस्त्र कहा जाता है वैसे हिंसा के साधन को भी शस्त्र कहा गया है। हत्या हिंसा होती है, किन्तु हिंसा हत्या के बिना भी होती है। अविरति या असंयम जो वर्तमान में हत्या नहीं किन्तु हत्या की निवृत्ति नहीं है, इसलिए वह हिंसा है। हत्या के उपकरणों का नाम है द्रव्य शस्त्र और हिंसा के साधन का नाम है भाव शस्त्र। यह व्यक्ति का वैभाविक गुण है या दोष है इसलिए यह मृत्यु का कारण नहीं, पाप बन्ध का कारण है। द्रव्य-शस्त्र व्यक्ति से पृथक् वस्तु है। शस्त्र तीन प्रकार के होते है। 1. स्वकाय-शस्त्र, 2. परकाय शस्त्र, 3. उभयशस्त्र (स्वकाय और परकाय दोनों का संयोग) जीव के छः निकाय है। 1.पृथ्वी 2.पानी 3.अग्नि 4.वायु 5. वनस्पति और 6.त्रस। पृथ्वी द्वारा पृथ्वी का उपघात-यह स्वकाय शस्त्र है। पृथ्वी से इतर वस्तु द्वारा पृथ्वी का प्रतिघात-यह परकाय शस्त्र है। पृथ्वी और उससे भिन्न वस्तु दोनों द्वारा पृथ्वी का उपघात यह उभय शस्त्र है। प्रवृत्ति-निवृत्ति का समन्वय - सम्पूर्ण अहिंसा- प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों में अहिंसा समाहित है। जो केवल निवृत्ति को प्रधान मानकर चिन्तन करती है, वह अहिंसा की आत्मा को परख नहीं सकता। प्रवृत्ति रहित निवृत्ति निष्क्रिय है। वह जीवन का अभिशाप है। जैन श्रमण के उत्तर गुणों में समिति और गुप्ति का विधान है। समिति प्रवृत्ति परक है तो गुप्ति निवृत्ति परक हैं।
SR No.538055
Book TitleAnekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy