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________________ 58 अनेकान्त/55/2 _अक्रियावादी के 84 भेद माने गये हैं। क्रियावाद की तरह ही इसके भेद भी गणितीय पद्धति के आधार पर ही किये गये हैं। अज्ञानवाद अज्ञानवाद का आधार अज्ञान है। अज्ञानवाद में दो प्रकार की विचारधाराएं संकलित हैं। कुछ अज्ञानवादी आत्मा के होने में संदेह करते हैं और उनका मत है कि आत्मा है तो भी उसे जानने से क्या लाभ? दूसरी विचारधारा के अनुसार ज्ञान सब समस्याओं का मूल है, इसलिए अज्ञान ही श्रेयस्कर है। ___ अज्ञानवादी कहते हैं- अनेक दर्शन हैं और अनेक दार्शनिक हैं। वे सब सत्य को जानने का दावा करते हैं, किंतु उन सबका जानना परस्पर विरोधी है। सत्य परस्पर विरोधी नहीं होता। यदि उन दार्शनिकों का ज्ञान सत्य का ज्ञान होता तो वह परस्पर विरोधी नहीं होता। वह परस्पर विरोधी है, इसलिए सत्य नहीं है। इसलिए अज्ञान ही श्रेय है। ज्ञान से लाभ ही क्या है? शील में उद्यम करना चाहिये। ज्ञान का सार है-शील, संवर। शील और तप से स्वर्ग और मोक्ष प्राप्त होता है। इसलिए अज्ञान ही श्रेयस्कर है। प्राचीनकाल में अज्ञानवाद की विभिन्न शाखाएं थीं। उनमें संजयवेलट्ठिपुत्त के अज्ञानवाद या संशयवाद का भी समावेश होता है। सूत्रकृतांग के चूर्णिकार ने अज्ञानवाद की प्रतिपादन पद्धति के सात और प्रकारान्तर से चार विकल्पों का उल्लेख किया है। 42 सूत्रकृतांग चूर्णिकार ने मृगचारिका की चर्या करने वाली, अटवी में रहकर पुष्प और फल खाने वाले त्यागशून्य संन्यासियों को अज्ञानवादी कहा है।43 साकल्य, वाष्कल, कुथुमि, सात्यमुनि, नारायण आदि अज्ञानवाद के आचार्य थे।44 विनयवाद विनयवाद का मूल आधार विनय है। इनका अभिमत है कि विनय से ही सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है। सूत्रकृतांग चूर्णि के अनुसार विनयवादियों का अभिमत है कि किसी भी सम्प्रदाय या गृहस्थ की निंदा नहीं करनी
SR No.538055
Book TitleAnekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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