SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 32 यहाँ कोई भी तो नहीं है संसार भर में मेरा बैरी । """ असामाजिकता, अन्याय, उत्पीड़न और बैर भाव का बहुत बड़ा कारण हमारे नेतागण हैं, जिन्हें स्वार्थ ने अंधा बना दिया है। वे " पद" पर बैठकर पद के विरुद्ध आचरण करते हैं। अब राजा प्रजा का अनुरंजन न कर प्रजा का दोहन और शोषण करता है। वह बातें तो बड़ी-बड़ी करता है, किन्तु स्वयं वैसा आचरण नहीं करता । "कथनी और करनी" की इस भिन्नता ने नेतृत्व के प्रति आस्था को ही कमजोर नहीं किया, बल्कि कहीं-कहीं तो नेता को नायक से खलनायक की स्थिति में पहुँचा दिया है। आज सच्चे नेता कम और तथाकथित नेता अनगिनत हैं। स्वयं का आचरण पवित्र नहीं होने तथा नहीं दिखने के कारण "समाज" के बीच विश्वास कम हुआ है इसीलिए आचार्य श्री कामना करते हैं कि 'पदाभिलाषी बनकर पर पर पद-पात न करूँ, उत्पात न करूँ कभी भी किसी जीवन को पद - दलित नहीं करूँ हे प्रभो । आज पथ दिखाने वालों को पथ दिख नहीं रहा है, माँ। कारण विदित ही है जिसे पथ दिखाया जा रहा है अनेकान्त/55/2 44 वह स्वयं पथ पर चलना चाहता नहीं औरों को चलाना चाहता है और इन चालक, चालकों की संख्या अनगिन है। 1711 11 'समाजवाद" के लिए आवश्यक है कि समाज में समता ही नही, बल्कि समरसता भी हो, किन्तु देखने में आता है समाज में "श्वान सभ्यता' ने अपना घर बना लिया है। आज व्यक्ति कुत्ते की तरह अपनी ही जाति पर गुर्राता है। सिंह वृत्ति समाप्त हो गयी है जबकि राजा की वृत्ति पहले सिंहवृत्ति
SR No.538055
Book TitleAnekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy