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________________ अनेकान्त/54-2 "ध्यै चिन्तायाम्" धातु से ध्यान शब्द निष्पन्न हुआ है। शब्दोत्पत्ति की दृष्टि से ध्यान का अर्थ चिन्तन है किन्तु प्रवृत्ति लब्ध अर्थ उससे भिन्न है। इस दृष्टि से ध्यान का अर्थ है चित्त को किसी एक लक्ष्य पर स्थिर करना। आदिपुराण में तन्मय होकर किसी एक ही वस्तु में जो चित्त का निरोध कर लिया जाता है उसे ध्यान कहा है, वह ध्यान वज्रवृषभनाराचसंहनन वालों के अधिक से अधिक अन्तर्मुहूर्त तक ही रहता है। ध्यान के अनेक पर्यायवाची हैं यथा योग, समाधि, धीरोध अर्थात् बुद्धि की चंचलता को रोकना, स्वान्त:निग्रह अर्थात् मन को वश में करना और अन्त: संलीनता अर्थात् आत्मा के स्वरूप में लीन होना।' ध्यान विषयक मूल ग्रन्थों की अपेक्षा भिन्न कर्तृ करण और भाव साधन की विवक्षा से ध्यान शब्द की निरुक्तियां प्रस्तुत की हैं, जो इस प्रकार हैं-आत्मा जिस परिणाम से पदार्थ का चिन्तवन करता है, उस परिणाम को ध्यान कहते हैं, यह करण साधन की अपेक्षा ध्यान शब्द की निरुक्ति है। आत्मा का जो परिणाम पदार्थो का चिन्तवन करता है, उस परिणाम को ध्यान कहते हैं। यह कर्तृवाच्य की अपेक्षा ध्यान शब्द की निरुक्ति है क्योंकि जो परिणाम पहले आत्मारूप कर्ता के परतंत्र होने से करण कहलाता था, वही अब स्वतंत्र होने से कर्ता कहा जाता है और भाव वाच्य की अपेक्षा करने पर चिन्तवन करना ही ध्यान की निरुक्ति है। यहां आचार्य जिनसेन ने शक्ति के भेद से ज्ञान स्वरूप आत्मा के एक ही विषय में तीन भेद दर्शा दिए हैं। करण कर्तृ भाव वाच्य निरुक्तियों से अनुप्रेक्षा या चिन्ता रूप अर्थ की निष्पत्ति होती है क्योंकि चिन्तवन में चित्त की चंचलता को अवकाश है अतएव जो चित्त का परिणाम स्थिर होता है, वह ध्यान है। चित्त के साथ शरीर और वाणी की भी निष्पकम्प स्थिति ध्यान कहलाती है। जैनाचार्यो की दृष्टि से मन, वचन और काय तीनों की स्थिरता का सम्बन्ध ध्यान से बतलाया है किन्तु पंतजलि ने ध्यान का सम्बन्ध केवल मन से ही माना है।' विसुद्धिमग्ग' के अनसार ध्यान मानसिक ही है। जब तक शरीर और वाणी मन सहित एक रूपता को प्राप्त नहीं होते तब तक ध्यान की पूर्णता असंभव है इसीलिए आचार्य कहते हैं कि जहां पर मन एकाग्र होकर अपने लक्ष्य के संलग्न होता है, S SSSSSOC2C2CCCCCCCCC
SR No.538054
Book TitleAnekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2001
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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