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________________ अनेकान्त / 54-2 22 रेवताद्रो जिनो नेमिर्युगादिर्विमलाचले । ऋषीणामाश्रमदेव मुक्तिमार्गस्य कारणम् ॥ aaaaada रैवत (गिरनार) पर्वत पर जिन का उल्लेख और स्कन्दपुराण का उक्त वर्णन जैनधर्म के 22वें तीर्थकर श्रीकृष्ण के चचेरे भाई नेमिनाथ के साथ अद्भुत साम्य रखता है, किन्तु अन्य वैदिक पुराणों में नेमिनाथ का स्पष्ट उल्लेख न होना विचारणीय है। जैन परम्परा में नेमिनाथ विषयक साहित्य में श्रीकृष्ण का सर्वत्र उल्लेख मिलता है। यहां तक कि नेमिनाथ की मथुरा से प्राप्त मूर्तियों में कृष्ण और बलराम का अंकन दोनों तरफ पाया गया है। तेईसवें तीर्थकर पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता अब असंदिग्ध है। वे चातुर्याम धर्म के उपदेशक के रूप में विख्यात रहे हैं। बौद्ध ग्रन्थ धम्मपद के ब्राह्मण वग्ग में जिस धर्म का उल्लेख हुआ है, वह तीर्थकर पार्श्वनाथ द्वारा प्रतिपादित चातुर्याम धर्म से अभिन्न है। गौतम बुद्ध का चाचा वप्प पार्श्वनाथ की परम्परा का अनुयायी था। बौद्ध साहित्य में महावीर का तो निगण्ठनात पुत्र के नाम से बहुधा वर्णन है ही, ऋषभदेव का भी उल्लेख हुआ है - 'आभं पवरं वीरं महेसिं विजितविनं' - धम्मपद, गाथा 423 आर्यमंजुश्री मूलकल्प नामक ग्रन्थ में आदिकालीन राजाओं के वर्णन के प्रसंग में नाभिपुत्र ऋषभ और ऋषभपुत्र भरत का वर्णन किया गया है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाई से प्राप्त सिक्कों एवं मूर्तियों से स्पष्ट हो जाता है कि सुदूर प्रागैतिहासिक काल में जैनधर्म बहुत व्यापक धर्म था तथा जिनों की राष्ट्रीय स्तर पर पूजा होती थी। प्रसिद्ध पुरातनवविद् श्री चन्दा एवं राधा कुमुद मुखर्जी तो मोहनजोदड़ो से प्राप्त योगी की मूर्ति को ऋषभदेव की मूर्ति मानते हैं। उक्त जैनेतर प्रमाणों से स्पष्ट हो जाता है कि जैन परम्परा के साथ ही जैनेतर धारायें भी जैनधर्म की प्राचीनता को एवं उसकी महत्ता को स्वीकार करती रही है। cxccccccco
SR No.538054
Book TitleAnekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2001
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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