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अनेकान्त/54/3-4
उक्तं हि श्रद्धा शक्तिरलुब्धत्वं भक्तिर्ज्ञानं दया क्षमा। इति श्रद्धादयः सप्त गुणा:स्युरॅहमेधिनाम्।।"
अर्थात् (1) प्रतिग्रह (पड़गाहन) (2) उच्चासन (3) पादप्रक्षालन (4) पूजन (5) प्रणाम (6) मनशुद्धि (7) वचनशुद्धि (8) कायशुद्धि (9) भोजनशुद्वि। ये नवधाभक्ति है। तथा (1) श्रद्वा (2) शक्ति (3) निर्लोभिता (4) भक्ति (5) ज्ञान (6) दया (7) क्षमा ये दाता के सात गुण हैं। इन दोनो को मिलाकर 'सोला' बनता है। यहाँ ध्यातव्य है कि मात्र वस्त्रादिकों की शुद्धि ही सोला नहीं है बल्कि उक्त नवभक्तियां एंव दाता के सात गुण ही यथेष्ट 'सोला' है। ___इस प्रकार दिया गया दान परम्परा से मोक्षकारण और साक्षात् पुण्य का कारण है- 'तच्च दानं पारम्पर्येण मोक्षकारणं साक्षात् पुण्य हेतुः।
'रत्नकरण्ड श्रावकाचार' के अनुसारगृहकर्मणपि निचितं कर्म विमाष्टि खलु गृहविमुक्तानाम्। अतिथिनाम् प्रतिपूजा रुधिरमलं धावते वारि॥ इस प्रकार अतिथियों की पूजा और सत्कार करने से गृहकार्यों से अर्जित समस्त कर्म-मल धुल जाते हैं। पूज्यपाद स्वामी ने कहा है कि परोपकार: सम्यग्ज्ञानदिवृद्धिः स्वोपकारः पुण्यसंचय।। अर्थात् जिन्हें दान दिया जाता है उनके सम्यग्दर्शन, ज्ञानादि की वृद्धि होती है, यही पर का उपकार है और दान देने से जो पुण्य का संचय होता है वह अपना उपकार है। जिन्हें स्व-पर उपकार की चाह है, उन्हें अतिथि संविभाग कर दान अवश्य देना चहिए रस व्रत के अन्तर्गत निम्नलिखित तथ्य आचरणीय हैं
(1) संयमी साधुओं, व्रतियों एंव साधर्मियों को परम वात्यल्यभाव से आहार दान देना चाहिए। ___ (2) शरीर जन्य व्याधियों के शमन हेतु औषधिदान देना चाहिए ताकि नीरोग शरीर की प्राप्ति हो।
(3) आत्मा की भूख ज्ञान है जिससे हिताहित रूप विवेक की प्राप्ति होती