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________________ अनेकान्त/54/3-4 से वर्तमान में तो प्रत्यक्ष सुख का नाश होता है अथवा दुर्ध्यति से मरकर दुर्गति में भी जा सकता है। अत: सुखी को नहीं मारना चाहिए। ___ कोई कहते हैं कि दु:खी जीवों का मार देना चाहिए, जिससे वह दुःख से मुक्त हो जायेगा; ऐसा विचार कर दु:खी जीवों को मारना भी ठीक नहीं है। क्योंकि तिर्यञ्च मानुष सम्बन्धी दु:ख तो अल्प हैं। उन स्वल्प दु:ख का नाश करने के विचार से दु:खी जीव का घात किया और वह मरकर नरक में गया तो महादु:खी होगा, अत: दु:खी को भी नहीं मारना चाहिए। पं. आशाधरजी ने कहा है हिंसदुःखिसुखि प्राणिघातं कुर्यान्न जातुचित्। अतिप्रसङ्गश्वभ्रार्ति सुखोच्छेदसमीक्षणात्॥ सा.ध.83 अतिप्रसंग, नरक सम्बन्धी दु:ख तथा सुख का उच्छेद देखा जाता है, इसलिए कल्याणेच्छुक मानव कभी भी हिंसक, दु:खी तथा सुखी किसी भी प्राणी का घात न करे। देशसंयमी के तीन भेद देशसंयमी तीन प्रकार का होता है-प्रारब्ध, घटमान और निष्पन्न। प्रारब्ध का अर्थ उपक्रान्त है अर्थात् शुरू किया है, जिसने ऐसा होता है। घटमान का अर्थ है-ग्रहण किए हुए व्रतों का निर्वाह करने वाला और निष्पन्न का अर्थ पूर्णता को प्राप्त। सारांश यह कि पाक्षिक श्रावक व्रतों का अभ्यास करता है, इसलिए प्रारब्ध देश संयमी है। नैष्ठिक प्रतिमाओं के व्रतों का क्रम से पालन करता है अत: घटमान है और साधक आत्मलीन होता है अतः निष्पन्न देश संयमी है। धर्म के विषय में धर्मपत्नी को सबसे अधिक व्युत्पन्न करना चाहिए ___ दर्शन प्रतिमाधारी श्रावक उत्कृष्ट प्रेम को करता हुआ अपनी धर्मपत्नी को धर्म में अपने कुटुम्ब की अपेक्षा अतिशय रूप से व्युत्पन्न करे; क्योंकि मूर्ख अथवा विरुद्ध वह स्त्री धर्म से पुरुष को परिवार के लोगों की अपेक्षा अधि क भ्रष्ट कर देती है।
SR No.538054
Book TitleAnekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2001
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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