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________________ अनेकान्त /54/3-4 85 माह तक अपने एकान्त महल के अन्दर रहने की व्यवस्था के साथ आज्ञा दी तथा सुरक्षा तथा गुप्तचरों को भी सावधान कर दिया। चम्पा अहिन को एक माह समय निकालना कोई बड़ी बात नहीं थी। अकबर को उसके पवित्र आचरण, कठिन तपस्या, कठोर साधना की सत्यता मालूम होने पर राजा आश्चर्य चकित रह गया। उसने अनेकों प्रश्न किये, कहा इतनी कठोर साधना क्यों और किसके प्रभाव से करती हो उत्तर था - तपस्या आत्म-कल्याण हेतु की जाती है जैन सन्तों के मंगलकारी उपदेश के प्रभाव से जीवन के कल्याण हेतु साधना, कठोर व्रत धारण करते हैं। अकबर के मन में जैन सन्तों के दर्शन की अभिलाषा जागृत हो गयी है । उस समय अहमदाबाद के पास खम्मात के प्रवास कर रहे हरिसूरिजी को राजा से भेंट करने का आमंत्रण भेजा गया। विचार विमर्श के बाद अकबर से भेंट करने का निर्णय लिया तथा ज्येष्ठ सुदी 13 सम्वत् 1639 सन् 1582 में जैन आचार्य अपने 13 विद्वानों सहित सीकरी पहुँच गये। बादशाह ने विनय आदर पूर्वक रत्न जड़ित सिंहासन पर बैठने का अनुरोध किया। संत ने कहा अहिंसावादियों के लिये वस्त्रों पर बैठना, ग्रहण करना, उनको छूना भी निषेध है। किसी जीव की हत्या तो क्या दुख देना भी नही चाहिए। ऐसा हमारे धर्मशास्त्र कहते हैं तथा आवागमन में भी जीवों की हत्या न हो किसी प्रकार के वाहनों का प्रयोग नहीं करते हैं तथा 4 हाथ आगे देखकर चलते हैं जिससे किसी की हत्या न हो। तथा पाँच महाव्रतों का पालन करते हैं। गृहस्थो को भी श्रावक धर्म का पालन करना पड़ता है। गृहस्थों के लिये जो भूषण हैं वह साधुओं के लिये दृषण है। इस प्रकार अनेकों प्रश्न चर्चा करने पर तथा उनका सटीक उत्तर मिलने पर अकबर के ऊपर काफी प्रभाव पड़ा । अहिंसा से प्रभावित होकर जैन धर्म के पर्वो पर पर्यूषण पर्व, जीव हिंसा बन्द कराने के आदेश दिये। सन् 1582 में उसने पिजड़ों में बंद सभी पक्षियो को छुड़वा दिया तथा सीकरी के पास डाबर के तलाब में मछली न मारने का भी आदेश जारी कर दिया । इनका उल्लेख हरिति जय सरिदास तथा जैन ऐतिहासिक गुर्जर काव्य संचय में भी मिलता है। जैन संतों का उसके ऊपर बहुत प्रभाव पड़ा तथा सुरिगों से प्रभावित होकर उसने एक भव्य समारोह का आयोजन करके उनको जगद्गुरु की उपाधि से सम्मानित किया। सन् 1583 मे अकबर के अनुरोध पर जैन सन्तों ने सीकरी में चातुर्मासकर धर्म की प्रभावन
SR No.538054
Book TitleAnekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2001
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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