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अनेकान्त/54/3-4
सृजन/प्रकाश्न गुणात्मक कालजयी हो, न कि परिमाणात्मक-सामयिक। पं. मुख्तार सफल एवं तार्किक लेखक के साथ ही सहृदय एवं यथार्थपरक कवि भी थे। वीतरागता, विश्वबन्धुत्व, आदर्श मानव जीवन, अछूतोद्धार भक्तिपरक स्तोत्र आदि मानव जीवन को महिमामंडित करने वाले विषयों पर उन्होंने भाव-प्रणव कवितायें हिन्दी और संस्कृत भाषा में शब्दांकित की। ये कविताएं "युगभारती" नाम से प्रकाशित हुई। मेरी भावना-जन भावना की प्रतीक :
उनकी हिन्दी कविताओं में वर्ष 1916 में रचित सर्वाधिक लोकप्रिय एवं बहुपठित कविता "मेरी भावना है"। मेरी भावना में कवि ने पक्षपात की भावना से ऊपर उठकर प्राणीमात्र की शांति, उत्थान और उन्हें आध्यात्मिक ऊँचाईयों तक पहुँचाने वाले वीतराग-दर्शन, उसकी प्राप्ति की प्रक्रिया-प्रतीक तथा आत्मसाधक साधु-श्रावकों की भावना और आचरण का हृदयग्राही वर्णन किया है। इसका प्रयोजन वस्तु-स्वरूप के भावबोध से उत्पन्न प्राणीमात्र के प्रति मैत्रीभाव, पर्यावरण-रक्षा, लोकोपयोगी जीवन-दर्शन, सहजन्याय एवं ध र्माधारित राज्य व्यवस्था तथा वीतरागता की प्राप्ति का सर्वकालिक/सार्वभौमिक लक्ष्य रेखांकित करना है। जिस प्रकार स्व. श्री चन्द्रधर शर्मा गुलेरी "उसने कहा था" कहानी लिखकर अमर हो गये, उसी प्रकार "मेरी भावना" कविता लिखकर पं. जुगल किशोर मुख्तार अमर हो गये। अंतर मात्र इतना है कि जो प्रसिद्धि एवं साहित्य में स्थान गुलेरी जी को मिला, मुख्तार सा. सामाजिक परिवेश में ही सीमित रह गये। किसी अन्य धर्मावलम्बी की यदि यह रचना होती तो वह राष्ट्रगीत जैसी "राष्ट्रभावना" या "जन-भावना" के रूप में प्रसिद्ध होती। मेरी भावना-सार्थक नाम :
जैसा भाव वैसी क्रिया, जैसी क्रिया वैसा फल, यह सर्वश्रुत है। अर्थात् भावानुसार फल मिलता है। इस मनोवैज्ञानिक तथ्य के आधार पर मानव जीवन को सम्यक् रूप से रूपांतरित करने के प्रयोजन की सिद्धि हेतु "मेरी भावना" एक सार्थक नाम है। इसमें ग्यारह पद्य हैं। इसमें वीतराग-विज्ञान के आद्य प्रतिपादक आचार्य कुन्दकुन्द एवं प्रखर तार्किक आचार्य समन्तभद्र आदि द्वारा प्रतिपादित वस्तु-स्वरूप, अनेकान्तदर्शन, परमात्मा का स्वरूप एवं उसकी