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अनेकान्त/54/3-4
'विशाला' नाम से भी प्रसिद्ध हुई। बुद्धकाल में इसका विस्तार नौ मील तक था। इसके अतिरिक्त, 'वैशाली, धन-धान्य-समृद्ध तथा जन-संकुल नगरी थी। इसमें बहुत से उच्च भवन, शिखर युक्त प्रासाद, उपवन तथा कमल-सरोवर थे। (विनय-पिटक एवं ललित विस्तर) बौद्ध एवं जैन-दोनों धर्मों के प्रारम्भिक इतिहास से वैशाली का घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है। "ई.पू. पाँच सौ वर्ष पूर्व भारत के उत्तर पूर्व भाग में दो महान् धर्मो के 'महापुरुषों' की पवित्र स्मृतियाँ वैशाली में निहित हैं। 9 बढ़ती हुई जनसंख्या के दबाव से तीन बार इसका विस्तार हुआ। तीन दीवारें इसे घेरती थीं। "तिब्बती विवरण भी इसकी समृद्धि की पुष्टि करते हैं। तिब्बती विवरण (सुल्व 3180) के अनुसार, वैशाली में तीन जिले थे। पहले जिले में स्वर्ण-शिखरों से युक्त 7000 घर थे, दूसरे जिले में चाँदी के शिखरों से युक्त 14000 घर थे तथा तीसरे जिले में ताँबे के शिखरों से युक्त 21000 घर थे। इन जिले में उत्तम, मध्यम तथा निम्न वर्ग के लोग अपनी-अपनी स्थिति के अनुसार रहते थे। (राकहिल लाइफ आफ बुद्ध-पृष्ठ 62)"। प्राप्त विवरणों के अनुसार वैशाली की जनसंख्या 16800 थी। क्षेत्र एवं निवासी :
जहाँ तक इसकी सीमा का सम्बन्ध है, गंगा नदी इसे मगध साम्राज्य से पृथक् करती थी। श्री रे चौधरी के शब्दों में, "उत्तर दिशा में लिच्छवि-प्रदेश नेपाल तक विस्तृत था।" श्री राहुल सांकृत्यायन के अनुसार, वज्जि प्रदेश मे आधुनिक चम्पारन तथा मुजफ्फरपुर जिलों के कुछ भाग, दरभंगा जिले का अधिकांश भाग, छपरा जिले के मिर्जापुर एवं परसा, सोनपुर पुलिस-क्षेत्र तथा कुछ अन्य स्थान सम्मिलित थे।
वषाढ़ में हुए पुरातत्व-विभाग के उत्खनन से इस स्थानीय विश्वास की पुष्टि होती है कि वहाँ राजा विशाल का गढ़ था। एक मुद्रा पर अंकित था-"वेशलि इनु..ट...कारे सयानक।" जिसका अर्थ किया गया, "वैशाली का एक भ्रमणकारी अधिकारी।" इस खुदाई में जैन तीर्थंकरों की मध्यकालीन मूर्तियाँ भी प्राप्त हुई हैं।