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________________ 46 अनेकान्त/54-2 Nosoessssssssccccccccceir से यही सत्य उद्भाषित होगा कि अनादि से किये गये मेरे प्रयत्न वृथा हैं। एक द्रव्य का दुसरे द्रव्य में प्रवेश ही संभव नहीं है। एक द्रव्य दुसरे का कर्ता हो ही नहीं सकता। प्रत्येक द्रव्य अपने-अपने द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव रूपी मजबूत चारदीवारी से निर्मित महल में स्वच्छंद परिणमन करता है। मात्र यह जीवन द्रव्य ही है जो भावरूपी दीवार में मोहरूपी खिड़की से पर द्रव्यों, उनकी क्रियाओं एवं परिणमन को देख-देख कर उनसे मोहाविष्ट हो तादात्म्य स्थापित करने के मिथ्याभिमान को ग्रहण कर उन क्रियाओं का कर्ता स्वयं को मानने की भूल कर बैठता है। बस यहीं से जीव के भोक्ता होने की अनवरत क्रिया चल पड़ती है। कर्ता भाव आते ही आश्रव एवं बंध के क्षेत्राधिकार में फंस कर उनके कुचक्र का हिस्सा बन जाता है। कर्म प्रकृतियों के उदय के विपाक का निमित्त पाकर आत्म प्रदेशों में उत्पन्न स्पंदन से निर्विकल्प न रह पाकर अपना समग्र उद्वेलित कर लेता है, फिर आश्रयभूत पदार्थो को निमित्त मानकर उनमें रागद्वेष करता हुआ आश्रव-बंध उदय के जाल में ठीक उस मकड़ी की तरह, जो स्वनिर्मित जाले के विस्तार की चाह में बाहर निकलने का तंतु भूल उसी जाले में फंस कर भ्रमित होती हुई प्राणों का उत्सर्जन कर देती है, यह जीव जन्म-मरण के जाल में उलझ चौरासी लाख योनियों के चक्र में फंस कर रह जाता है। चिंतन से प्रकट यह सत्य ध्यान की दिशा बदल देता है। ध्यान अब परापेक्षी न रहकर निजात्म स्वरूप को जानने एवं उससे तादात्म्य स्थापित करने के पुरुषार्थ में रत हो जाता है। मृत ज्ञान का अवलम्ब छोड़ निज ज्ञान प्रकाश में, तत्व, अर्थ एवं स्वरूप का सत्य खोज डालता है। तब ज्ञान, ज्ञान से ज्ञान का परिचय करा देता है। बंधुओं, पर को जानने के प्रयत्न अनादि से करते हुए भी पर को जान नहीं पाये अपितु मोह-मिथ्यात्व में ही उलझ कर रह गये। मगर स्वयं को जानने के उपरांत पर को जानने की आवश्यकता ही नहीं रह जाती है क्योंकि स्वात्म प्रकाश में पर अपनी समस्त पर्यायों के साथ युगपत् प्रतिभाषित होता ही है। तो ज्ञान जब ज्ञान से ज्ञान को जान ले, बस तभी संयम स्वत: पूर्णता को प्राप्त हो जाता है। -18, महादेव नगर, जयपुर-302021
SR No.538054
Book TitleAnekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2001
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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