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________________ आर्यिका, आर्यिका है मुनि नहीं -रतनलाल बैनाड़ा एक साप्ताहिक में 'जगतपूज्य आर्यिकाओं की नवधा-भक्ति में पाद-प्रक्षालन पूजनादि नहीं करने-कराने वालों की सेवा में उत्तर तलाशते प्रश्न' पढ़ने में आये। साथ ही 'जैन गजट' के कई अंकों में इसी विषय पर पत्र, समीक्षा व अन्य समाचार पढ़ने को मिलने से, यह आवश्यक समझा गया कि इस विषय पर आगमिक समाधान अवश्य दिया जाना चाहिये, ताकि सभी धर्म-प्रेमियों को वास्तविकता ज्ञात हो सके। अतः इसी आशय से यह प्रयास किया गया है। आइये, हम सभी निष्पक्ष भाव से उपरोक्त विषय पर विचार करते हैं :चर्चा नं. 1 - लिंग कितने प्रकार के हैं और उनमें कौन-सा लिंग पूज्य है? समाधान - आचार्य कुंदकुंद ने दर्शन पाहुड़ में लिंगों का वर्णन इस प्रकार किया है - एक्कं जिणस्स रूवं बीयं उक्किट्ठसावयाणं तु। अवरट्ठियाण तइयं चउत्थं पुण लिंग दंसणं णत्यि।। 18।। अर्थ - दर्शन अर्थात् शास्त्रों में एक जिन भगवान का जैसा रूप है अर्थात् निर्ग्रन्थ मुनि का लिंग, दूसरा उत्कृष्ट श्रावक का लिंग और तीसरा जघन्य पद में स्थित आर्यिका का लिंग ये तीन लिंग कहे हैं, चौथा लिंग दर्शन में नहीं है। उपरोक्त गाथा के अनुसार आचार्य कुन्दकुन्द ने तीन लिंग माने हैं। लेकिन उन्होंने तीनों लिंगों को समान पूज्य नहीं लिखा। वन्दनीय कौन है, इसके लिए सूत्र पाहुड़ की निम्न गाथाओं को देखें : जो संजमेसु सहिओ आरंभपरिग्गहेसु विरओ वि। सो होइ वंदणीओ ससुरासुरमाणुसे लोए।। 11।। जो बावीसपरीसह सहति सत्तीसएहिं संजुत्ता। ते होंति वंदणीया कम्मक्खयणिज्जरा साहू।। 12|| अवसेसा जे लिंगी दंसणणाणेण सम्मसंजुत्ता। चेलेण य परिगहिया ते मणिया इच्छणिज्जाय।। 13।।
SR No.538053
Book TitleAnekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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