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________________ 42 अनेकान्त/53-2 第劣% %% %%%% % %% %% %% % %% देवद्रव्य हैं, जिस पर प्रत्येक भक्त को वन्दना करने का अधिकार है, प्रिवी कौंसिल ने मान्य किया था। उन्हें जैनियों की मुकदमेबाजी की मूढ़ता पर बड़ी चिढ़ थी। एक दफा वह बोले, "भला देखो तो लाखों रुपया बरबाद किया जा रहा है। एक अजैन वकील और एक अजैन न्यायाधीश हमारे धर्म के मर्म को क्या समझेगा और वह कैसे धार्मिक निर्णय देगा? फिर भी जैनी सरकारी न्यायालयों में न्याय के लिए दौड़ते हैं।" बिहार सरकार से अनुबंध जींदारी उन्मूलन कानून के अनुसार पारसनाथ पर्वत बिहार सरकार में निहित हो गया। श्वेताम्बरी मूर्तिपूजकों ने 1965 में बिहार सरकार से असत्य तथ्यों के आधार पर एक अनुबंध कर लिया जिसके अनुसार जंगल की आमदनी का 60 प्रतिशत मैनेजरी की उजरत उन्हें मिलना तय हुआ। साह शान्ति प्रसाद जैन को जैसे ही उक्त घटना का पता चला तो उन्होंने सरकार से अपने अधिकारों के रक्षा की पैरवी की। उन्होंने दिगम्बर जैन समाज का आह्वान किया और दिल्ली में समूचे देश से आए स्त्री-पुरुषों की एक रैली निकली। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री को दिगम्बर जैन समाज की ओर से अपने अधिकारों की रक्षार्थ एक ज्ञापन प्रेषित किया गया। फलस्वरूप बिहार सरकार ने दिगम्बरों के साथ भी एक अनुबंध किया जिसके अनुसार दिगम्बरों को अपनी टोंकों की रक्षा और पूजा प्रक्षाल का हक मिला। तीर्थ क्षेत्र कमेटी के समर्पित अध्यक्ष साहू अशोक कुमार जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी के सन् 1990 में अध्यक्ष निर्वाचित हुए। दिगम्बर तीर्थों विशेषकर शिखरजी की दशा देखकर वह द्रवित हो गए। वह चाहते थे कि दिगम्बर व मूर्तिपूजक श्वेताम्बरों का आपसी समझौता हो जाय ताकि लाखों रुपया वार्षिक मुकदमेबाजी में खर्च न होकर तीर्थों का विकास हो। जैन समाज की विश्व-पटल पर पहचान बने। इसी बीच समर्पित कानूनविद डॉ. डी.के. जैन उनके सम्पर्क में आए। इसी भावना के अंतर्गत बिहार सरकार से सम्पर्क कर उन्होंने राज्य सरकार से एक अध्यादेश प्रस्तावित कराया जिसके अनुसार दोनों पक्षों के समान संख्या में सदस्य रहें %%%%%%%%%%% %%%%%%%%%%% % -
SR No.538053
Book TitleAnekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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