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________________ अनेकान्त/53-2 29 卐卐卐卐卐 *** श्री सम्मेद शिखर- महान सिद्धक्षेत्र •पं. बलभद्र जैन श्री सम्मेद शिखर सम्पूर्ण तीर्थक्षेत्रों में सर्वप्रमुख तीर्थक्षेत्र है । इसीलिए इसे तीर्थराज कहा जाता है। इसकी भाव सहित वन्दना यात्रा करने से कोटि-कोटि जन्मों से संचित कर्मों का नाश हो जाता है। निर्वाण क्षेत्र - पूजा में कविवर द्यानतरायजी ने सत्य ही लिखा है-"एक बार बन्दै जो कोई । ताहि नरक- पशुगति नहिं कोई । " एक बार वन्दना करने का फल नरक और पशुगति से ही छुटकारा नहीं है, अपितु परम्परा से पंसार से भी छुटकारा है। किन्तु यह वन्दना द्रव्य-वन्दना या क्षेत्र - वन्दना नहीं, भाव-वन्दना होनी चाहिए । ऐसी अनुश्रुति है कि श्री सम्मेद शिखर और अयोध्या ये दो तीर्थ अनादि-निधन शाश्वत हैं। अयोध्या में सभी तीर्थंकरों का जन्म होता है और सम्मेद शिखर में सभी तीर्थंकरों कर निर्वाण होता है। किन्तु हुण्डावसर्पिणी के काल-दोष से इस शाश्वत नियम में व्यतिक्रम हो गया । अतः अयोध्या में केवल पांच तीर्थंकरों का ही जन्म हुआ और सम्मेद शिखर से केवल बीस तीर्थंकरों ने निर्वाण - लाभ किया । किन्तु इनके अतिरिक्त असंख्य मुनियों ने भी यहीं पर तपश्चरण करके मुक्ति प्राप्त की। सम्मेद शिखर की भाव--वन्दना से तात्पर्य यह है कि इस क्षेत्र से जो तीर्थकर और अन्य मुनिवर मुक्ति को प्राप्त हुए हैं, उनके गुणों को सच्चाई के साथ अपने हृदय में उतारें और तदनुसार अपनी आत्मा के गुणों का विकास करें। ऐसा करने से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होगा, इसमें सन्देह नहीं । ढाई द्वीप में कुल 170 सम्मेद शिखर होते हैं। उनमें जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र का सम्मेद शिखर वही है जो पारसनाथ हिल के नाम से विख्यात है । ईसा की प्रथम शताब्दी में आ. कुन्दकुन्द द्वारा रचित प्राकृत निर्वाण काण्ड में सम्मेद शिखर से बीस तीर्थकरों की निर्वाण प्राप्ति का उल्लेख करते हुए उन्हें नमस्कार किया गया है। प्रसिद्ध आर्ष ग्रन्थ 'तिलोयपण्णत्त' (4-1186-1206) में तो आचार्य यतिवृषभ ने बीस तीर्थकरों द्वारा सम्मेद शिखर पर्वत से मुक्ति प्राप्त करने का वर्णन विस्तारपूर्वक किया है। उसमें उन्होंने प्रत्येक तीर्थकर की निर्वाण -प्राप्ति की तिथि, नक्षत्र और उनके साथ मुक्त होने वाले मुनियों की संख्या भी दी हैं । 卐卐卐卐卐卐 卐卐卐卐卐卐卐
SR No.538053
Book TitleAnekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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