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________________ अनेकान्त/३७ "नामेः पुत्रश्च ऋषभः ऋषभाद् भरतोभवत् तस्य नाम्ना त्विह वर्ष भारतं चेति कथ्यते स्कन्ध पुराणे महिश्वर खंड के कौमारखण्ड अ. 37 ___-वराह पुराण अध्याय 74 "नामे मेरूदेव्यां पुत्रभजनयत् ऋषभनामानं तस्य भरतो पुत्रश्च तावदग्रजः तस्य भरतस्य पिता ऋषभः हेमाद्रे दक्षिणं वर्षं महद् भारतं नाम शशास ब्रह्माण्ड पुराण के पूर्वार्द्ध अनुपश पाद अध्याय-14 "सो अभिषिच्चर्षभः पुत्र महाआब्राज्यम स्थितः हिमान्ह दक्षिणं वर्षं तस्य नाम्ना विदुर्बुधाः इसी प्रकार हरिवंश पुराण सर्ग 8 श्लेक 55, 105 व सर्ग 9 श्लोक 21, मार्कन्डेय पुराण अध्याय 50 श्लोक 40-41 कुर्मपारण अध्याय 41 श्लोक 38 विष्णुपुराण द्वितीयांश अध्याय। श्लोक 27-28 में भी इसी से मिलता-जुलता अंकित है। श्रीमद्भागवत स्कन्ध 5 अध्याय 4 में लिखा है ‘येषां खलु महयोगी भरतो ज्येष्ठः श्रेष्ठगुण आसीत् येनेद वर्ष भारतमिति व्यपदृिशन्ति इसी प्रकार इसी ग्रन्थ पर एक स्थान पर लिखा है तेषां वे भरतो ज्येष्ठो नारायण परायणः विख्यातं वर्ष मेतन्नाम्ना भारतमुक्तमम् मत्स्य पुराण अध्याय 14/5 में लिखा है"भरणात् प्रजनाच्चेव मनुर्भरत उच्यते निरूक्त बचनश्चैव वर्ष तद भारतः स्मृतम् -वायु पुराण प्रथम खण्ड अ. 45-76 "भरणाच्य प्रजानां" वे मनुर्भरत उच्यते" वैदिक शास्त्र वायु पुराण 33/52 में भरत को मनु को जैनधर्म का उपासक माना है। डा. विशुद्धानंद पाठक, डा. जयशंकर मिश्र, डा. सर्वपल्ली रामाकृष्णन् ने धर्म की प्राचीनता के विषय में विचार प्रकट किये हैं कि सिन्धु घाटी की सभ्यता से मिली योग मूर्तियां जैनधर्म की प्राचीनता का प्रमाण है। वैदिक संस्कृत के यजुर्वेद, अथर्वेद गोपदब्राह्मण एवं भागवत आदि महान ग्रन्थों में श्रमण संस्कृति नाभिराय, ऋषभदेव, भरत, वाहुबलि एवं अरिष्ट नेमि आदि का वर्णन आया है। इन्हें जैनधर्म का उपासक दिगम्वर श्रमण माना है। यजुर्वेद,
SR No.538053
Book TitleAnekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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