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________________ अनेकान्त/३५ अधोलोक मे रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा. पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमप्रभा और महातम प्रभा ये सात पृथिवियाँ एक राजू के अन्तराल से हैं।' मध्यलोक में चित्रा पृथ्वी के ऊपर एक-एक को चारों ओर से घेरे हुए द्वीप व समुद्र स्थित हैं। सबसे बीच में एक लाख योजन विस्तार वाला सुमेरु पर्वत है। सुमेरु के चारों ओर जम्बूद्वीप है। उसके आगे लवण सागर फिर धातकी खण्ड फिर कालोदधि सागर. फिर पुष्करवर द्वीप एक दूसरे को घेरे हुए स्थित हैं। इस प्रकार असंख्यात द्वीप व समुद्र हैं जम्बूद्वीप थाली के आकार का तथा शेष द्वीप सागर चूडी के आकार के हैं। आठवां द्वीप नन्दीश्वर द्वीप है। पुष्करवर द्वीप के बीचोबीच मानुषोत्तर पर्वत है, जिससे इस द्वीप के दो भाग हो जाते हैं। मानुषोत्तर पर्वत तक ही मनुष्यों की गति है। अत जम्बूद्वीप. धातकी-खण्ड और आधा पुष्करवर द्वीप ये मिलकर अढाई द्वीप कहलाते है। लगभग इसी प्रकार लोक के आकार की कल्पना वैदिक संस्कृति में भी की गई है। श्रीमदभागवत के अनुसार विष्णु ने ब्रह्माण्ड नामक शरीर की रचना की। वह ब्रह्माण्ड हजारो वर्षों तक जल में पड़ा रहा। विष्णु ने उसे चैतन्य किया तब उससे हजारों चरण, भुजा, नेत्र, मस्तक वाला विराट पुरुष निकला। विराट पुरुष के विभिन्न अगों में समस्त लोकों की कल्पना की गई है। उसके कमर के नीचे के अगो मे सात पाताल की और पेडू से ऊपर के अंगो में स्वर्गो की कल्पना की जाती है। उसके पैरों से लेकर कटि पर्यन्त सातो पाताल तथा भूलोक की कल्पना की गई है। नाभि में भवर्लोक की, हृदय में स्वर्गलोक की, वक्षस्थल में महलोक की, गले मे जनलोक की, स्तनो में तपोलोक की और मस्तक में सत्यलोक है, जो ब्रह्मा का नित्य निवास है । इस प्रकार दोनों में काफी समानता है। वैदिक लोक के सात पाताल. सात नरक है तथा सात स्वर्ग ही जैनाभिमत स्वर्ग और अनुत्तर, अनुदिश आदि हैं। जैनाभिमत सिद्धशिला सत्यलोक है।
SR No.538053
Book TitleAnekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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