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________________ अनेकान्त/२३ ही गोष्ठी में इस प्रकार की चर्चा का प्रसंग लाना चाहिए। उन्होंने लिखा है पापोपदेशो यद्वाक्यं हिंसाकृष्यादिसंश्रयम् । तज्जीविन्यो न तं दद्यान्नापि गोष्ठ्यां प्रसज्जयेत् ।।१३ उपर्युक्त कथनों से स्पष्ट है कि पशु-पक्षियों को कष्ट पहुंचाने वाला व्यापार, हिंसा, आरंभ, ठगविद्या आदि की चर्चा करना वह भी उन लोगों के बीच जो वही कार्य करते हों तो वह पापोपदेश अनर्थदण्ड है। व्रती श्रावक को ऐसी चर्चा नहीं करना चाहिए। आचार्य अमृतचन्द्र ने तो किसी भी प्रकार से आजीविका चलाने वाले को निष्प्रयोजन आजीविका विषयक कथन को पापोपदेश माना है। उनके अनुसार अनर्थदण्डव्रती को यह नही करना चाहिए। २. हिंसादान : निष्प्रयोजन विषैली गैस, अस्त्र-शस्त्र आदि उपकरणों का दान, जिनसे हिंसा हो सकती हो, हिंसादान नामक अनर्थदण्ड कहलाता है। समन्तभद्राचार्य के अनुसार फरसा, तलवार, कुदाली, अग्नि, आयुध, सीग, सांकल आदि हिंसा के उपकरणों का दान हिंसादान नामक अनर्थदण्ड है। आचार्य पूज्यपाद ने भी इसी प्रकार विष, कांटा, शस्त्र, अग्नि, रस्सी, चाबुक और डण्डा आदि हिंसा के उपकरणों के दान को हिंसादान अनर्थदण्ड कहा है।१५ अमृतचन्द्राचार्य ने लिखा है कि असिधेनुविषहुताशनलांगलकरवालकार्मुकादीनाम् । वितरणमुपकरणानां हिंसाया: परिहरेद् यत्नात् ।। अर्थात् असि. धेनु, विष, अग्नि, हल, करवाल, धनुष आदि हिंसा के उपकरणों को दान देने का प्रयत्नपूर्वक त्याग कर देना चाहिए। पण्डितप्रवर आशाधर जी का कहना है कि प्राणिवध के साधन विष, अस्त्र आदि हिंसादान को त्याग देना चाहिए तथा पारस्परिक व्यवहार के
SR No.538053
Book TitleAnekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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