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________________ 53/3 अनेकान्त / 57 लिए मंत्रों में विश्वास करते थे। पुराण में पाँच अक्षर, छः अक्षर आदि के अनेक मंत्र दिए गए हैं। एक पूरा अध्याय ही इनसे भरा हुआ है। उन सबकी चर्चा यहाँ संभव नहीं है । स्त्रियों की स्थिति कन्या पर अतिथि का अधिकार - एक चौंकाने वाली बात आचार्य ने लिख दी है और उसके समर्थन में लिखा है “इति श्रूयते” अर्थात् यह सुनने में आता है, ऐसा लिख दिया है। प्रसंग है - चक्रवर्ती वज्रदन्त ने अपने बहनोई वज्रबाहु से अपने पुत्र वज्रजंघ से विवाह के लिए उनकी कन्या का हाथ माँगा और निम्न प्रकार कहा अथवेतत् खलूक्त्वायं सर्वथार्हति कन्यकाम् । हसन्त्याश्च रुदन्त्याश्च प्राघूर्णक इति श्रूयते । 17-196 - अर्थात् गुण, कुल आदि का कथन व्यर्थ है । लोक में ऐसा सुना जाता है कि कन्या चाहे हँसती हुई हो या रोती हुई हो प्राघूर्णक यानी अतिथि उसका अधिकारी होता है I विद्वानों को इस पर विचार करना चाहिए । सब रत्नों में कन्या - रत्न श्रेष्ठ - यह भी आचार्य की उक्ति है । विद्यावती स्त्री सबसे श्रेष्ठ पद प्राप्त करती है । स्वयं आदिनाथ ने अपनी पुत्री ब्राह्मी का लिपि की और सुंदरी को गणित की उच्च शिक्षा दी थी । संपत्ति में अधिकार - पुत्री को पिता की संपत्ति में समान अधिकार संभवतः आदिपुराण में तो नहीं है किंतु वैदिक धारा के स्कंदपुराण से यह सूचना मिलती है कि भरत ने अपने आठ पुत्रों का आठ द्वीपो का राज्य दिया था और हमारे इस नीवं कुमारी द्वीप का राज्य अपनी यशस्विनी कन्या कुमारी को दिया था । कुमारी द्वीप का प्रयोग संपूर्ण भारत के लिए और केरल के अर्थ में भी किया जाता है । समान आसन - जहाँ भी राजाओं का वर्णन आया है, वहाँ आचार्य ने स्पष्ट लिखा है कि रानियों को समान आसन प्रदान किया जाता था । इसका अर्थ यह भी हुआ कि पर्दा नहीं किया जाता था । स्त्रियों का शृंगार - महिलाओं की चोटियों पर फूलों की मालाएँ लटकती रहती थीं। यह तथ्य यह सूचना भी देता है कि जिनसेनाचार्य का विहार संभवतः
SR No.538053
Book TitleAnekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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