SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 53/3 अनेकान्त/12 से किसी एक घर में प्रासुक जल देखकर कुछ क्षण अतिथिदान के लिये प्रतीक्षा करें। यदि दैव-वश पात्र प्राप्त होता हो तो उसे गृहस्थ की तरह दान दें। शेष बचे उसे स्वयं खावें, अन्यथा उपवास करें।" (सागार धर्मामृत 16/49 विशेषार्थ) जब इस प्रकार क्षुल्लक पाँच घर से भिक्षा लाकर भोजन करता है तब उनकी नवधा-भक्ति का प्रश्न ही नहीं उठ पाता। कोई आर्यिकाओं को उत्कृष्ट पात्र में ही उपचार से मानते हैं। उनकी ऐसी मान्यता बिल्कुल आगम-सम्मत नहीं है। सभी आचार्यों ने उत्तम पात्र में मात्र परिग्रह-रहित मुनियों को ही लिया है। उदाहरण के लिये आचार्य कुन्दकुन्द की 'बारसाणुपेक्खा' गाथा नं. 17, 18 का अवलोकन करें। उत्तम पत्तं भणियं, सम्मत्तगुणेण संजुदो साहू। सम्मादिट्ठी सावय, मज्झिम पत्तो हु विण्णेयो।। 17।। णिद्दिट्ठो जिण समये, अविरद सम्मो जहण्ण पत्ते त्ति। सम्मत्त रयण रहिओ, अपत्तमिदि संपरिक्खेज्जो।। 18।। अर्थ - सम्यग्दर्शन से युक्त साधु को उत्तम पात्र कहा है और सम्यग्दृष्टि श्रावक को मध्यम पात्र जानना चाहिये।। 17।। जैन-आगम में अविरत सम्यग्दृष्टि को जघन्य-पात्र कहा है और जो सम्यक्त्व रूपी रत्न से रहित है, वह अपात्र है। इस प्रकार पात्र की अच्छी तरह परीक्षा करनी चाहिये। . उपरोक्त गाथाओं से बिल्कुल स्पष्ट है कि आर्यिकाओं को उत्तम-पात्र कहना बिल्कुल आगम-सम्मत नहीं है। आचार्य कुन्दकुन्द ने मुनि को ही उत्तम-पात्र माना है। चर्चा नं. 8 – प्रथमानुयोग में 'पूजा' शब्द का प्रयोग, किस अर्थ में हुआ है? समाधान - कुछ लोग पुराण ग्रंथों में आये कुछ प्रसंगों का उल्लेख आर्यिका, क्षुल्लक आदि की पूजा के प्रमाण-स्वरूप कहते हैं, लेकिन उन प्रमाणों का अर्थ भी नवधा-भक्ति नहीं है। जहाँ कहीं भी क्षुल्लक आदि के अर्घ्य अथवा पूजा का प्रसंग आया है, वह उनके सम्मान के अर्थ में ही लिया गया है। पूजा का अर्थ सम्मान और सत्कार भी होता है। आये हुये सत्पात्र का सत्कार करना गृहस्थ का कर्तव्य है, किन्तु सत्कार और पूजा अलग-अलग हैं। पूजा का अर्थ आराधना है, जबकि सत्कार शिष्टाचार का अंग है। यदि ऐसा न माना जाए, तो उन्हीं
SR No.538053
Book TitleAnekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy