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अनेकान्त/५
महापुराण को छोड़कर शेष दिगम्बर ग्रन्थों में वामा आया है गुणभद्रकृत उत्तरपुराण' तथा पुष्पदन्तकृत महापुराण में उनकी माता का नाम ब्राह्मी उल्लिखित हुआ है। यह भिन्नता कैसे आई? इसका कोई स्पष्ट कारण प्रतीत नहीं होता है। पार्श्वनाथ का जन्म वाराणसी में हुआ था तथा उनका गोत्र काश्यप था-यह बात सभी को एकमत से स्वीकार्य है, किन्तु पार्श्वनाथ का वंश क्या था? इस विषय में परम्परागत भिन्नता है। श्वेताम्बर परम्परा उन्हें इक्ष्वाकु वंश का मानती है, जबकि दिगम्बर परम्परा के अनुसार भगवान् पार्श्वनाथ उग्रवंशीय थे।
तिलोयपण्णत्ति में कहा गया है कि भगवान् पार्श्वनाथ का जन्म पौष कृष्णा एकादशी के दिन विशाखा नक्षत्र में हुआ था। सभी दिगम्बर परम्परा के पार्श्वनाथ विषयक साहित्य में उनकी यही जन्मतिथि उल्लिखित है। किन्तु श्वेताम्बर परम्परा के कल्पसूत्र के अनुसार पार्श्वनाथ का जन्म पौष कृष्णा दशमी की मध्यरात्रि को माना गया है। शीलांककृत ‘चउपन्नमहापुरिसचरियं' में भी यही तिथि स्वीकारते हुए विशाखा नक्षत्र में चन्द्र का योग होने पर उनका जन्म कहा गया है। हेमचन्द्राचार्यकृत त्रिषष्टिशालाकापुरुष चरित में तथा पद्मसुन्दरसूरिकृत श्रीपार्श्वनाथचरित में भी पौष कृष्णा दशमी को ही पार्श्वनाथ का जन्म माना गया है। स्पष्ट है कि यह मतवैभिन्य कदाचित् तिथि के क्षयाक्षय या रात्रि के मध्यभाग में तिथि की अलग-अलग मान्यता के अनुसार हुआ हो।
पार्श्व नाम का कारण बताते हुए आवश्यक नियुक्ति, कल्पसूत्र, हेमचन्द्राचार्य कृत त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित तथा पद्मसुन्दरकृत श्रीपार्श्वनाथचरित में कहा गया है कि उनकी माता ने गर्भकाल में अपने पास में एक सर्प को देखा था, अतः उनका नाम पार्श्व रखा गया। गुणभद्राचार्यकृत उत्तरपुराण तथा पुष्पदन्तकृत महापुराण के अनुसार इन्द्र ने बालक का नाम पार्श्व रखा था।११ पार्श्व नाम रखे जाने का कोई कारण निर्दिष्ट नहीं किया गया है।
पार्श्वनाथ के विवाह के प्रसंग में परम्परागत मतवैभिन्य है तिलोयपण्णत्ति के अनुसार उन्होंने कुमारकाल में ही तप को ग्रहण किया था। अर्थात् उन्होंने विवाह नहीं किया। तिलोयपण्णत्ति एवं दिगम्बर परम्परा के किसी