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सैद्धान्तिक भूल की है। क्योंकि जिनसूत्र (जिनवाणी) के ज्ञाता पुरुष सम्यक्त्व के बहिरंग निमित होते हैं अन्तरंग नहीं। यह गलती डॉ. दरबारीलालजी कोठिया न्यायाचार्य ने दि. ६-१६ सित. १६८२ के जैनसंदेश में प्रकट की थी। डॉ. दरबारीलालली न्यायाचार्य के इस कथन से डॉ. पन्नालालजी साहित्याचार्य सहमत रहे हैं। मैं भी सहमत हूँ।
(क्रमशः)
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