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अनेकान्त/२४
श्वेताम्बर पन की झलक मिलती है। बनारसी विलास के राग असावरी (पृ. २३६) में प्रसन्नचन्द्र ऋषि का उल्लेख है जो श्वेताम्बर थे-“अर्द्धकथानक । प्रस्तावना पृ. ३३ / पं. नाथूराम प्रेमी का लेख"
१६. पद्मप्रभु चालीसा-पदमप्रभु चालीसा में चालीस पद्य पंक्तियाँ हैं। बड़ा अच्छा तथा संक्षेप में पद्मप्रभु भगवान का सम्पूर्ण जीवन-दर्शक स्तुतिपाठ है। इसमें विशिष्ट रूप से बाड़ा-पदमपुरा के पद्मप्रभु की अतिशयकारी मूर्ति का वृत्तान्त तथा महिमा वर्णित है। इस चालीसा का पाठ प्रतिदिन भारत में लाखों नर-नारी करते हैं। चन्द्रकवि ने इसे बनाया है। मैं भी इस चालीसा की हृदय से प्रशंसा करता हूँ। कुछ विशेष ध्यान देने योग्य स्थल निम्न हैंक) सारे राजपाट को तज करके पदमप्रभु जी मनोहर वन में पहँचे
थे तथा फिर वहाँ मुनि दीक्षा ली थी। अतः पंक्तियाँ इस क्रम से पढ़ी जानी उचित है - सारे राजपाट को तज के, तभी मनोहर वन में पहुंचे। कार्तिक सुदी त्रयोदशी भारी, तुमने मुनिपद दीक्षाधारी।। सार यह है कि उक्त दोनों पंक्तियों को इसी उपर्युक्त क्रम से पढ़ा जाना चाहिए, न कि पहले “कार्तिक सुदी"......... तथा बाद में 'सारे राजपाट ...........।' मूला नाम जाट का लड़का, घर की नींव खोदने लागा। यह पंक्ति काव्य की दृष्टि से थोड़ी शुद्ध हो जाती तो अच्छा रहता। अंतिम शब्द लागा तथा लड़का : इनके उच्चारण में जीभ ठोकर खाती
है-"जिह्वा जानाति छंदांसि।" ग) ऐसी महिमा बतलाते हैं, अंधे भी आंखें पाते हैं तथा अन्धा देखे,
गूंगा गाए............इन पंक्तियों में विषय (अन्ध का देखना) की
पुनरावृत्ति हुई है। घ) जो यह लिखा है कि "कार्तिक सुदी त्रयोदशी भारी तुमने मुनि पद
दीक्षाधारी” यहाँ यह बताया है कि कार्तिक सुदी तेरस को दीक्षा ली। परन्तु पद्मप्रभु भगवान ने कार्तिक सुदी तेरस को दीक्षा नहीं