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________________ एवाचेला भूता भविष्यंतश्च। यथा मेर्वादि पर्वतगता प्रतिमास्तीर्थकरमार्गानुयायिनश्च गणधरा इति तेप्यचेलास्तच्छिष्याश्च। तथैवेति सिद्धमचेलत्वम्। चेलपरिवेष्टितांगो न जिनसदृशः व्युत्सृष्ट प्रलम्बभुजो निश्चलो जिनरूपतां धत्ते। भ. आ. पृ. 611 पं. नाथूराम प्रेमीः जैन साहित्य और इतिहास (द्वि. संस्करण) पृ. 61-67 । 'अनेकान्त' आजीवन सदस्यता शुल्क : 10 1.00 रु. वार्षिक मूल्य : 6 रु., इस अंक का मूल्य : 1 रुपया 50 पैसे यह अंक स्वाध्यायशालाओं एवं मंदिरों की माँग पर निःशुल्क विद्वान लेखक अपने विचारों के लिए स्वतन्त्र हैं। यह आवश्यक नहीं कि सम्पादक-मण्डल लेखक के विचारों से सहमत हो। पत्र में विज्ञापन एवं समाचार प्रायः नहीं लिए जाते। संपादन परामर्शदाता : श्री पद्मचन्द्र शास्त्री कार्यकारी संपादक : सुभाष जैन, महासचिव, वीर सेवा मंदिर, नई दिल्ली-2 प्रकाशक : श्री भारतभूषण जैन, एडवोकेट, वीर सेवा मंदिर, नई दिल्ली-2 मुद्रक : मास्टर प्रिंटर्स, नवीन शाहदरा, दिल्ली-32 • Donations are exempted under the 80 G, of Income Tax Act. Regd. with the Ragistrar of Newspaper at R.No. 10591/62
SR No.538052
Book TitleAnekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1999
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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