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________________ अनेकान्त/३४ ग्रन्थ में कामचाण्डाली की स्तुति करते हुए उसका स्वरूप इस प्रकार दिया है - भूषिताभरणैः सर्वैर्मुक्तकेशा निरम्बरा। पातु मां कामचाण्डाली कृष्णवर्णा चतुर्भुजा॥२॥ फलकांचकलशकरा शाल्मलिदण्डोद्धमुरगोपेता। जयतात् त्रिभुवनवन्द्या जगति श्री कामचाण्डाली॥३॥२२ अर्थात् जो सब आभूषणों से भूषित है, वस्त्र-रहित नग्न है, जिसके शिर के बाल खुले हुए हैं, ऐसी श्यामवर्णा कामचाण्डाली मेरी रक्षा करे। जिसके हाथ मे फल, कॉच और कलश है, जो शाल्मलिदण्ड को लिये हुए है और सर्प से युक्त हैं, वह त्रिभुवन वन्दनीया कामचाण्डाली जयवत हो। मंत्राधिराज कल्प इसके कर्ता सागरचन्द्र है। इसका रचनाकाल वि० स० १२५० के आस-पास माना जाता है। यह ग्रन्थ “जैन स्तोत्र सन्दोह', भाग-२ में प्रकाशित है। चार सौ चौबीस पद्यो का यह ग्रन्थ पाँच पटलो में विभाजित है। प्रथम पटल मे पार्श्वनाथ को नमन एवं गुरु वन्दना करके रचना का उद्देश्य जिनभक्ति बत या है। प्रस्तावना के रूप मे मत्रदान विधि का निरूपण है। दूसरे पटल मे विषय निर्देश करते हुए मंत्राधिराज के बीजाक्षरो का प्रभाव कहा गया है। इसके पद्य-१३ मे अभय-देव सूरि का तथा १४ मे पद्मदेव का नामोल्लेख है। तीसरे पटल मे पार्श्वनाथ की स्तुति, १६ विद्यादेवियों, २४ तीर्थकरो की माताओं, उनके २४ यक्षों और यक्षियों का कथन किया गया है। अनन्तर तीर्थकरों के लांछन, उनके शरीर का वर्ण और ऊँचाई का निर्देश है। नवग्रहों और दशलोकपालो द्वारा तीर्थकरों की सेवा काने का उल्लेख है। चौथे पटल में सकलीकरण, भूमि, जल और वस्त्रशुद्धि के मंत्र, पाँच मुद्राएँ, आत्मरक्षा, पार्वयक्ष, पार्श्वयक्षिणी, धरणेन्द्र, कमठ, जया, विजया, पद्मावती और क्षेत्रपाल के मत्र बतलाये गये है। अनन्तर ध्यान, पूजन, जप और होम का निधान वर्णित है। पांचवें पटल में ऋतुओं, योगो, आसनों, मुद्राओं और यंत्रो के विशिष्ट ध्यान आदि का निरूपण हुआ है।
SR No.538051
Book TitleAnekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1998
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size4 MB
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