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________________ अनेकान्त / २६ हमारे सोचने व काम करने पर, कह सकते है कि हमारे कर्म से ही ये कर्म परमाणु आते जाते है। है तो ये अजीव-जीव से भिन्न स्व से अलग। स्व की तरह दिखते भी नही हैं परन्तु करिश्मा बड़ा है इनका । इनमे कुछ है अच्छे और कुछ बुरे । कोई काम अच्छा बुरा सोचा, किया, कि ये आकर चिपक जाते है स्व से आत्मा से जैसे साफ सुथरे आइने पर आकर जम जाती है धूल | अब यह सवाल न करो कि इन अजीव कर्माणु मे कहाँ से आई यह बात कि यह तमीज करे कि कौन सा काम अच्छा है और कौन सा बुरा- किस नाप तोल से आते है। ये सब है बस है आते है किसी हिसाब से बस आते है। क्या करेगे ज्यादा जानकर । इतना जान लो कि यही है जो सुख दुख देते है, स्व को घुमाते रहते है। तो फिर कैसे छूटे इनसे पीछा, निजात पाए इनसे कैसे। एक तरीका तो है इनको आने से रोको और यदि आत्मा से चिपक चुके है तो उनको साफ करो और जा पहुचो वहाँ जहाँ और परमात्माए वर्तमान है। इनको रोकने व साफ करने का रास्ता तलाश किया है-बड़े सोच विचार के बाद एक रास्ता निकाला है जिसे कहते है अहिसा अचूक अस्त्र है वह । सबसे राग व द्वेष का छोड़ना ही है अहिसा । किसी अन्य स्व । आत्मा को तकलीफ पहुँचाना तो दूर, ऐसा करने के लिए मन मे लाओ न बोलो। ऐसा करोगे तो कर्माणु न आएगे न चिपकेगे और चिपक गए वे झड़ भी जाएगे। कुछ ऐसे भी तो है जो अपना असर दिखाकर झड़ भी जाते है, समय पाकर कमजोर होकर गिर जाते है जैसे बुढ़ापे मे दाँत । यह सब तभी सभव है जब आप मन को साफ करने की दिशा मे कदम उठाए। ये जो सब आप जिसे देखकर हैरान है बस वही कदम है-हर स्व । आत्मा की शक्ति के अनुसार । सोपान बनाए गए है ये नियम, पूजा, पहाड़, मदिर, मूर्तिया, मत्र-तत्र, ये जुलूस, ये मुनि, ये प्रवचन । इनसे आगे है अध्ययन और ध्यान । बड़ी ताकत है ध्यान मे । ध्यान की ओर ही ले जाते है ये छोटे-छोटे रास्ते । इसे योग भी कह लेते है। यह ले जाते है स्व की ओर और स्व पर पहुचे बिना आपके स्व के आना जाना सुख दुख लगा ही रहेगा, स्व भटकता ही रहेगा। ध्यान मे तमाम इद्रियो व मन पर काबू करना होता है, जब पूरा काबू पा लिया जाए, तो उस स्व आत्मा को हमने जिन यह नाम दिया है। हम हार-जीत की भाषा जल्द समझते है इसलिए जिसने इन्द्रिय और मन को जीत लिया वह जिन है । |
SR No.538051
Book TitleAnekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1998
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size4 MB
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