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अनेकान्त/१३
से ज्ञात होता है कि देवदत्त “वीर कवि' के पिता और लावर्ड गोत्री थे। इन्होंने “वरंगचरिउ का उद्धार किया था। लेकिन जंबूस्वामि चरिउ में “पासणाह चरिउ' का उल्लेख नही है, इससे सिद्ध होता है कि वीर कवि के पिता देवदत्त ने पासणाह चरिउ की रचना नहीं की । यदि उन्होंने “पासणाह चरिउ” की रचना की होती तो उसका भी उल्लेख अवश्य हुआ होता। इससे सिद्ध है कि “पासणाह चरिउ के प्रणेता “वरगचरिउ के उद्धारक देवदत्त से भिन्न हैं। ३. सागरदत्तसूरि कृत पास पुराण :
वि०स० १०७६ में सागरदत्त सूरि ने ग्यारह सधियों में पास पुराण की रचना की थी, जो अद्यतन अनुपलब्ध है। ४. आचार्य पद्मकीर्तिकृत पासणाह चरिउ : __वि. स ११३४ (शक स. १११) मे पद्म कीर्ति ने “पासणाह चरित्र” नामक ग्रन्थ की रचना की थी। इनके संबंध में केवल इतना ही ज्ञात है कि ये एक मुनि थे और इनके गुरु का नाम जिणसेण (जिनसेन) था। डॉ० प्रफुल्ल कुमार मोदी ने इन्हे सप्रमाण दक्षिण का माना है।
पद्मकीर्ति ने अपने इस कृति मे भगवान पार्श्वनाथ के चरित्र का वर्णन विविध घटनाओ सहित १८ सन्धियों, ३२० कड़वकों और ३३२३ से कुछ अधिक पक्तियो में किया, ऐसा उन्होंने स्वय उल्लेख किया है। पहली सधि से सातवी सन्धि तक भगवान पार्श्वनाथ और कमठ के विगत भवो का वर्णन के पश्चात् पार्श्वनाथ के वर्तमान भव का विशद विवेचन, शेष सन्धियों मे किया गया है। आठवी सधि में पद्मकीर्ति ने लिखा है कि वैजयन्त स्वर्ग से च्युत होकर कनकप्रभदेव वाराणसी के राजा की रानी वामा के गर्भ से अवतरित हुआ। नौवीं सधि मे १६ वर्ष की आयु तक की गई भगवान पार्श्वनाथ की बाल क्रीड़ाओं का उल्लेख किया गया है। जब पार्श्व को मालुम हुआ उनके मामा रविकीर्ति के सहायतार्थ पवनराज से युद्ध करने के लिए उनके पिता जा रहे है तो उन्हें रोक कर पार्श्वनाथ पिताश्री से आदेश लेकर युद्ध करने चल पड़ते है। भयंकर युद्ध कर पार्श्वनाथ पवनराज को बन्दी बना लेते है। इसका वर्णन पद्मकीर्ति ने ११वी
और १२ वी सधि मे विस्तार से किया, जो इनके पूर्ववर्ती किसी आचार्य के पार्श्व सबधी ग्रन्थ में उपलब्ध नहीं है। तेरहवी सधि मे रविकीर्ति के द्वारा रखे गये इस प्रस्ताव को पार्श्वनाथ स्वीकार कर लेते है कि प्रभावती नामक राजकुमारी के साथ वे विवाह करा लेगे। इसके पश्चात् तापसो द्वारा जलाये जाने वाली लकड़ी