________________
अनेकान्त/३२
प्रारभ - श्री जिनवर के पूजो पद सरस्वति सीस नवाय।
गनधर मुनि के चरण नमि भाषा कहो बनाय ।। अन्त - व्यालीस मुनि अनगार, मुक्ति गये जग के आधार ।
पाहि कूट को हरस न करे, कोड उपवास तनो फल भरे।।
१२. शिखर माहात्म्य - इसके कर्ता ज्ञात नही हैं। इसकी भाषा हिन्दी गद्य है। हिन्दी गद्य की यह एकमात्र रचना उपलब्ध हुई है। इसकी पत्र सख्या-७० तथा पूर्ण है। दशा अच्छी है। यह जैन सिद्धात भवन, आरा की प्रति है। प्रति मे लेखनकाल नही दिया गया है। प्रति का प्रारभ और अन्त इस प्रकार है ------ प्रारभ - अजितनाथ सिद्धवर कूट । अस्सी कोडि एक अरब चौवन लाख मुनि
सिद्ध भये, बत्तीस कोटि उपास का फल इस कूट के दर्शन का
फल है। अन्त - पार्श्वनाथ सुवर्णभद्रकूट । सम्मेदशिखर सुवर्ण कूट से पार्श्वनाथ जिनेद्रादि
मुनि एक करोड चौरासी लाख पैतालीस हजार सात सौ ब्यालीस मुनि सिद्ध भये। इस कूट के दर्शन से सोरा (सोलह) करोड
उपास का फल है।
१३. सम्मेदशिखर विलास - इसके कर्ता देवाब्रह्म है। पत्र सख्या-४ तथा वेष्टन संख्या-१७१ है। प्रति पूर्ण है। ग्रन्थ सूची मे इसका रचनाकाल १८वी शताब्दी लिखा है। यह शास्त्र भडार दि जैन मन्दिर यशोदानन्दजी जयपुर की प्रति है।
१४. सम्मेदशिखर विलास - इसके कर्ता रामचद्र है। इसकी पत्र सख्या-७ तथा वेष्टन सख्या ५३/८८ है। प्रति का लेखनकाल सं १६०४ है। यह दि जैन मन्दिर भादवा (राज) की प्रति है।
१५. सम्मेदशिखर विलास - इसके कर्ता केशरीसिह है। प्रति की पत्र सख्या-३ तथा वेष्टन संख्या-७६७ है। इसका लेखनकाल २०वी शताब्दी अकित है। यह प्रति शास्त्र भंडार दि जैन मन्दिर सघीजी जयपुर मे सुरक्षित है।
१६. शिखर विलास - इसके कर्ता धनराज है। ग्रन्थसूची के अनुसार इसका रचना काल स १८४८ है। यह अजमेर शास्त्रभंडार जयपुर की प्रति है।
१७. शिखरविलास - इसके कर्ता मनसुखराम है। ये ब्रह्म गुलाल