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________________ अनेकान्त/१३ ण वसो अवसो अवसस्स कम्मभावासयं ति बोधव्वा।। जुत्ति त्ति उवाअंति य णिरवयवो होदि णिज्जुत्ती।। नियमसार-१४२ यह गाथा मूलाचार मे यथावत् रूप मे पायी जाती है। यथाण वसो अवसो अवसस्स कम्मभावासयं ति बोधव्वा। जुत्ति त्ति उवाय ति य णिरवयवा होदि णिज्जुत्ती।। मूलाचार-७/१४ उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि नियमसार की प्रवचनसार मे दो, समयसार मे दो, पचास्तिकाय मे दो, भावपाहुड मे तीन, भगवती आराधना मे तीन, मूलाचार मे बाईस, गोम्मटसार जीवकाण्ड मे दो, आवश्यक नियुक्ति मे दो, महापच्चक्खाण मे छह, आउरपच्चक्खाण (१) मे दो, आउरपच्चक्खाण (२) मे एक, वीरभद्र के आउरपच्चक्खाण मे आठ, चदावेज्झयं मे दो, तित्थोगाली मे एक, आराहणापयरण मे एक, आराहणपडाया (१) मे दो, आराहणापडाया (२) मे एक तथा मरणविभक्ति मे तीन गाथाएँ प्राप्त होती है। नियमसार की गाथा स० ९९ से १०५ तक की सात गाथाएँ प्रत्याख्यान से सम्बद्ध है। ये सातो गाथाएँ अनेक ग्रन्थो मे उपलब्ध है। इसी प्रकार नियमसार की गाथा सख्या १२६ से १२९ तक की पॉच गाथाएँ मूलाचार मे एक साथ मिलती है। अहिंसा शोध संस्थान वैशाली (नालन्दा)
SR No.538050
Book TitleAnekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1997
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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