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अनेकान्त / ३
ग्रन्थान्तरों में नियमसार की गाथाएँ
डा० ऋषभचन्द्र जैन "फौजदार "
“नियमसार” १८७ गाथाओ मे निबद्ध आचार्य कुन्दकुन्द की प्रमुख रचना है। इसकी भाषा जैन शौरसेनी प्राकृत है। इसमे श्रमण की आचार सहिता वर्णित है। दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनो परम्पराओ मे कुन्दकुन्द को समान आदर प्राप्त है। दोनो परम्परा के ग्रन्थो मे कुन्दकुन्द की गाथाएँ पर्याप्त मात्रा मे पायी जाती है। सभव है ऐसी गाथाएँ कुन्दकुन्द से भी प्राचीन हो, जिन्हे कुन्दकुन्द सहित अनेक ग्रन्थकारो ने अपने ग्रन्थो का अग बनाया हो ।
नियमसार की कतिपय गाथाऍ स्वय कुन्दकुन्द के प्रवचनसार, समयसार, पचास्तिकाय एव भावपाहुड मे प्राप्त होती है। शौरसेनी के ही मूलाचार, भगवती आराधना, गोम्मटसार जीवकाण्ड प्रभृति ग्रन्थो मे भी पायी जाती है। अर्धमागधी के आवश्यक निर्युक्ति, महापच्चक्खाण प्रकीर्णक, आउरपच्चक्खाण प्रकीर्णक (१) आउरपच्चक्खाण प्रकीर्णक (२) वीरभद्र कृत आउरपच्चक्खाण प्रकीर्णक, चदावेज्झय प्रकीर्णक, तित्थोगाली प्रकीर्णक, आराधना पयरण, आराहणा पडाया (१) आराहणापडाया (२) एव मरणविभक्ति आदि ग्रन्थो मे नियमसार की गाथाएँ उपलब्ध होती है। इन ग्रन्थो मे प्राप्त गाथाओ के केवल भाषाई परिवर्तन दृष्टिगोचर होते है। नियमसार की सर्वाधिक २२ गाथाएँ मूलाचार मे मिलती है। नियमसार की ऐसी गाथाएँ यहाँ प्रस्तुत है
मग मग्गफलं ति यदुविहं जिणसासणे समक्खादं ।
मग्गो मोक्खउवायो तस्स फलं होइ णिव्वाणं । | नियमसार - २
नियमसार की उक्त गाथा सख्या - २ की तुलना मूलाचार की निम्न गाथा से कीजिए
मग मग्गफलं तिय दुविह जिणसासणे समक्खादं ।
मग्गो खलु सम्मत्तं मग्गफल होई णिव्वाण ।। मूलाचार - ५/५