________________
पापट संग्रहालय कुण्डेश्वर ( टीकमगढ ) की जैन प्रतिमायें
- ले. रामनरेश पाठक
कुण्डेश्वर टीकमगढ़ ललितपुर मार्ग के मध्य अवस्थित बुन्देलखण्ड का विशेष रमणीय स्थान है। यहां शिव जी का मंदिर है, इसके संबंध में यह जनश्रुति है, कि एक खटीक की वधू कुंडी में धान कूट रही थी कि अनायास इस कुण्डी से दुग्ध की धार निकली और तद्पश्चात् शिवलिंग प्रकट हो गया। इसी कारण इस शिव मूर्ति को कुण्डेश्वर कहा जाता है और उसी काल से यहां का पुजारी उसी वंश का खटीक ही चला आ रहा है । 1 इसी मंदिर में एक नन्दी की प्रतिमा है, जिस पर विक्रम संवत् 1201 (ईस्वी सन् 1142 ) का लेख उत्कीर्ण है। 2
मंदिर के समीप जमडार नदी का सुन्दर प्रपात है, जिसको उषा कुण्ड कहते हैं। इसी स्थान पर वाणासुर की पुत्री उषा नित्य प्रति स्नान करने आती थी और इसी स्थान पर उषा-अनिरूद्ध परिणय हुआ था। कुण्डेश्वर के वन उपवन और ऊषा कुंज, बरीधार, ऊषाधार, ऊषा विहार आदि बड़े ही रमणीय स्थल हैं। इसी स्थान पर पं बनारसी दास चतुर्वेदी ने बुन्देल खण्ड के सांस्कृतिक उत्थान के लिये अडिग साधना की थी । 3 जमडार नदी एवं शिव मंदिर के मध्य में एक कोठी बनी हुई है जो कुण्ड कोठी के नाम से जानी जाती है। इसी कोठी का निर्माण टीकमगढ़ के बुन्देला शासकों ने 19 वीं शताब्दी में करवाया था। इसी भवन में वर्तमान में पापट संग्रहालय स्थित है।
इस संग्रहालय की स्थापना जिला पुरातत्व संघ टीकमगढ द्वारा 1974 में की गई थी। प्रारम्भ से यह संग्रहालय शासकीय बुनियादी प्रशिक्षण केन्द्र कुण्डेश्वर में था । जिस भवन में संग्रहालय की प्रतिमायें प्रदर्शित थी वहां पर नवोदय विद्यालय खुल जाने के कारण सितम्बर 1986 से यह स्थान्तरित कर कुण्ड कोठी में स्थित है। संग्रहालय में टीकमगढ़ नगर, कुण्डेश्वर, मोहनगढ़, जतारा एवं टीकमगढ जिले के अन्य स्थानों से प्राप्त प्रतिमायें संग्रहीत है। इसके अलावा दिगोड़ा जिला टीकमगढ़ से प्राप्त ताम्रपत्र भी संग्रहीत है । संग्रहालय में पाषाण प्रतिमाओं का विशाल संग्रह है, जिनमें से जैन प्रतिमाओं का विवरण निम्नलिखित है :