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________________ अनेकान्त/५ हेमचन्द्राचार्य ने तो पैशाची के लिए भी ऐसा ही सूत्र दिया है - शेषं शौरसेनी वत् ८.४.३२३ तब क्या यह माना जाय कि पैशाची भी शौरसेनी में से जन्मी है। वररूचिने इसी बात को इस रूप मे कहा है "प्रकृतिः शौरसेनी" - सूत्र नं. १०२ ।। यदि ऐसा भी मान लें तो फिर नीचे जो कहा जा रहा है उसका क्या अर्थ होगा और तब फिर शौरसेनी मौलिक भाषा है, प्राचीन है, सभी प्राकृतों की जन्मदात्री है, इत्यादि जो कुछ कहा जा रहा है, प्रचार किया जा रहा है, उसका क्या होगा? वररूचि के प्राकृत प्रकाश मे परिच्छेद १२ मे दिये गये निम्न दो सूत्र ध्यान से समझने लायक हैं। (१) शौरसेनी १२.१ और (२) प्रकृतिः संस्कृतम् १२.२ । ____ अर्थात् शौरसेनी प्राकृत के प्रचारकों के अनुसार इसका अर्थ होगा संस्कृत मे से शौरसेनी निकली है, उसका अपना स्वतत्र अस्तित्व नही था, वह तो सस्कृत (रूपी माता) से जन्मी है और उसका मूल आधार ही सस्कृत है। यदि 'प्रकृति' शब्द का अर्थ जन्मदात्री ले लिया जाय तो फिर हेमचन्द्राचार्य ने जो सूत्र दिया है उसका अर्थ क्या होगा? "अथ प्राकृतम्" ८ १ १ और उसकी वृत्ति मे जो कहा गया है"प्रकृतिः संस्कृतम्' इसका अर्थ यही होगा कि प्राकृत की जन्म-दात्री संस्कृत भाषा है, सस्कृत भाषा मे से प्राकृत भाषा निकली है और उसी नय से शौरसेनी भाषा प्राकृत में से निकली है ऐसा उनके निम्न सूत्र से किसी प्रकार के विरोध के बिना मानना ही पडेगा"शेष प्राकृतवत्" ८.४ २८६ -३७५, सरस्वती नगर, आजाद सोसाइटी के पास अहमदाबाद-३८००१५ (गुजरात)
SR No.538050
Book TitleAnekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1997
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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