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________________ अनेकान्त/21 (2) द्वितीय खण्ड में कुछ ऐतिहासिक अभिलेखों का उल्लेख किया गया है। जिनकी वर्तमान स्थिति नहीं दर्शाई गयी है। सामान्य पाठक यदि अभिलेखों को देखना/समझना चाहे तो उसे प्रतिमा को खोजने में ही बहुत समय लगा देना पडेगा। उदाहरणार्थ पृष्ठ 120 में वाराणसी, कुण्डलगिरी आदि के लेख इस संबंध में उल्लेखनीय हैं। सोनागिरी का संवत् 1101 की प्रतिमा भी निर्दिष्ट स्थान पर उपलब्ध नहीं है। चित्र दिया गया होता तो शोधी खोजी विद्वान् को कठिनाई नहीं होती। (3) उज्जैन पट्टावली में 1 से 89 तक के उल्लिखित भट्टारकों में संवत् 26 में हुए गुप्त गुप्ति (गुप्तिगुप्त) का ही एक नाम है जिनकी जाति परवार बताई गयी है। सम सामयिक अन्य जैन उप जातियों के उल्लेखों का अभाव सन्देह उत्पन्न करता है। (4) कोच्छल्ल गोत्र- श्री स्व पं नाथूराम जी प्रेमी के लेख में (इसी पुस्तक के पृष्ठ 175) में इस गोत्र का जिन जैन उपजातियों में अस्तित्व बताया गया है उनमें दो जैन जातियाँ हैं-- परवार और गहोई । श्री प्रेमी जी की मान्यतानुसार सस्कृत लेखों में गहोई वंश को गृहपति वंश लिखा गया है। परवार के बारह गोत्रों मे नौ गोत्र गृहपत्यन्वय जाति से मिलते हैं। अहार क्षेत्र के संग्रहालय में गृहपत्यन्वय जाति के चौदह प्रतिमा लेख हैं। इन प्रतिमा लेखों में दो प्रतिमा लेख ऐसे भी हैं जिनमें कोच्छल्ल नामक गोत्र का उल्लेख हुआ है। ये लेख हैं- वि.सं. 1207 और वि.सं. 1213 के। इनमें संवत् 1207 के लेख में माघ वदी अष्टमी तिथि में वाणपुर में गृहपत्यन्वय के कोछिल गोत्र के हरिषेण द्वारा नित्य वन्दनार्थ प्रतिमा प्रतिष्ठा कराये जाने का उल्लेख है। इसी प्रकार दूसरे सं. 1213 के एक लेख में भी वाणपुर निवासी गृहत्पयन्वय के कोछिल गोत्र के हरिषेण आदि श्रावकों के द्वारा प्रतिष्ठा कराये जाने का उल्लेख है। प्रो. खुशालचन्द्र गोरावाला ने साहु मातन का नाम अहार के संवत् 1207 के महावीर प्रतिमा लेख में पौरवाटान्वय के पूर्व पढ़कर निष्कर्ष स्वरूप ग्रहपत्यन्वय और पौरपाटान्वय को एक माना है। (दे पृ. 118)। अपने अभिमत के सन्दर्भ में आदरणीय पं 'गोरावाला ने अहार के जिन चार प्रतिमालेखो का उल्लेख किया है वे निम्नप्रकार हैं “संवत् 1207 माघ वदि 8 वाणपुरे गृहपत्यन्वये कोछल्लगोत्रे साहु महावली रेमले पुत्र हरिषेणं झिणे-तत्सुकारापितेय नित्यं प्रणमन्ति । 'संवत् 1213 आषाढ सुदी 2 सोमदिने गृहपत्यन्वये कोछल्ल गोत्रे वाणपुर वास्तव्य तद सुत माहवा पुत्र हरिषेण उदई जलखू विअंदु प्रणमन्ति नित्य । हरिषेण पुत्र हाडदेव पुत्र महीपाल गंग बसबचन्द्र लाहदेव माहिशचन्द्र सहदेव एते प्रणमन्ति नित्यं।
SR No.538049
Book TitleAnekant 1996 Book 49 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1996
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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