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अनेकान्त/24
गतांक से आगे
प्राकृत वैद्यक : हरिवाल कृत अपमग्गमूल सिंधव मोत्थसहा घसहं तं च पत्तेण। वहु चक्खु तत्थभरिए पसमय जह हुव बहु तौएण।।17।। सोहिंजण पत्तरसो महुणा सह नेऽछिया हुंति। अह सिय कणयरदल रसि अजिय नयणाई उवसमहिं।।18।। तरूलग्गां आवलहल सज्जारसेणावि णयह पूरेह । जह तिमिरं सूरेण य तह तिमिराति दोसयं जाइ।।1911 .................................... तिहलारसेण धसिया वंझा सहियावि काचसो हेइ।। 2011 रत्तंदणुविकुमारी लोयाणमल पुप्फ णासणं ऊणइ। बंझा जलेण घसिया पडवालं च फेडेइ।। 21।। चिंत्तय तिहल पाडोला जब कत्थ मज्झि सोठिकरसोवि। पीवह पाडल फुल्लं वणरत्तत्थि दोस फेडेइ।। 22|| महुलढिलोहु तिहला महुगुल सहिया वि गुलय भरकेह। गलकणदंत पीडा हणइ भयंदरू वि णयण रुजा।। 23।। सिंधव हरणइ धात्री गेरु समभाय चउरी जलपिट्ठा। पिडिय बाधय दोसो णासइ णयणस्स सव्वरूया।। 2411 अमरी मोत्थ पडोला भूणेव धमासउ जवासोय। तिहला सणिव छल्लीय पप्पडउ कत्थयं पिवह।। 25।। हर....... रंड मूल छायल खीरेण सुहम पीसेह। चक्खू सू लं बद्ध णयणस्स णासे इ।। 261 फे..............मलवायं पित्तय फोडाय सन्निवायो य। बेसप्पीदि विणासइ इमो सहोमच्चलं........।। 27 ।। महु सक्कर सह पीया वास्थमूलं च कढिय चउभायं । णासइ रत्तं पित्तं पंडु रोयणाणि चैव ।। 28।। तिविड चित्तं तिहला गंठीयं लोह तक्क सहपीयं। तक्षी पाणे जुत्तं पंडुरोयं समोसरइ।। 29।। सहु तक्कर बडउत्ती दक्ख छुहारायं स्वद्धमहुलत्तं। अह दक्ख सुंठि हिंगं अहवा समपीय पंडुरोयहणइ।। 30।।