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अनेकान्त/30 आदा खु मज्झ णाणे आदा में दंसणेचरिते या आदा पच्चकखाणे आदा में संवरे जोगे।। नियमसार-100
उक्त गाथा भावपाहुड मे क्रमांक 58 पर यथावत् रूप से पायी जाती है । समयसार में भी उसी रूप में उपलब्ध है किन्तु यहाँ विभक्ति-प्रयोग में कुछ परिवर्तन हुआ है। यथा
आदा खु मज्झ णाणं आदा दंसणं चरित्तं च। आदा पच्चक्खाणं आदा में संवरो जोगो।। समयसार-277 (अमृतचन्द्र)
समयसार-16, 295 (जयसेन) समयसार में जयसेन के पाठ मे उक्त गाथा दो बार आई है। मूलाचार में भी देखिए
आदा हु मज्झ णाणे आदा में दंसणे चारित्तेय। आदा पच्चक्खाणे आदा में संवरे जोए।। मूलाचार-2/10 (46) किंचित् भाषागत परिवर्तन के साथ उक्त गाथा आउरपच्चक्खाण एव महापच्चक्खाण में भी प्राप्त होती है यथा
आया हु महं नाणे आया में दंसणे चरित्तेय।। आया पच्चक्खाणे आया में संवरे जोगे।।
वीरभद्र/आउरपच्चक्खाण 16/25/2837 महापच्चक्खाण में "सवरे" के स्थान पर “सजमे पाठ आया है। यथाआया मज्झं नाणे आया में दसणे चरित्ते य। आया पच्चक्खाणे आया में संजमे जोगे।। महापच्चखाण-7/11/1451 मरणविभक्ति मे भी देखिएआया पच्चक्खाणे आया में संजमे तवे जोगे। जिणवयणविहिविलग्गो अवसेसविहिं तु दंसे हं।। मरणविभक्ति -5/216/965 यहा उक्त गाथा का उत्तरार्ध प्राय पुर्वार्ध से मिलता है। एगो मरदि य जीवो एगो व जोवदि सयं। एगस्स जादिमरणं एगो सिज्जझदि णीरयो।। नियमसार-10] यह गाथा किंचित् शब्द परिवर्तन के साथ मूलाचार मे देखिएएओ य मरइ जीवो एओ य उववज्जइ। एयस्स जाइमरणं एओ सिज्झइ णीरओ।। मूलाचार-2/11 (47) उक्त गाथा भाषागत परिवर्तन के साथ महापच्चवक्खाण में इस प्रकार है। एक्को उप्पज्जए जीवो, एक्को देव विवज्जई। एक्कस्स होइ मरणं एक्को सिज्झइ नीरजो।। महापच्चक्खाण7/14/1454 वीरभद्र के आउरपच्चक्खाण मे देखें-- एगो वच्चइ जीवों एगो चेवुववज्जई। एगस्स होई मरणं एगो सिज्झइ नीरजो।। वीरभद्र/आउरपच्च-16/26/2838