SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त/2 पंचपरमेष्ठी-स्वरूप घणघाइ कम्मरहिया केवलणाणाइपरमगुण सहिया। चौतिस अदिसयजुत्ता, अरिहंता एरिसा होति।। णट्ट कम्मबंधा अट्टमहागुणसमण्णिया परमा। लोयग्गठिदा णिच्चा सिद्धा जे एरिसा होति।! पंचाचार समग्गा पंचिंदियदंतिदप्पणिद्दलणा। धीरा गुणगंमीरा आयरिया एरिसा होति।। रयणत्तय संजुत्ता जिण कहिय पयत्थदेसया सूरा । णिक्कंखभावसहिया उबज्झाया एरिसा होति।। वावारविप्पमुक्का चउविह राहणा सया रत्ता। णिग्गंथा णिम्मोहा साहू एदेरिसा होति ।। अर्थ 1 जो सपूर्ण घातिया कर्मो से रहित है, केवलज्ञानादि परमगुण के धारी हैं, चौंतीस अतिशय विराजमान हैं, सो ही अरहत कहलाते है। 2 जिन्होने अष्टकर्मो के बन्धनो का नाश कर दिया है, जा आर महागुण करके सहित परम अर्थात् बडे है, लोक के अग्रभाग में स्थित हैं, नित्य हैं वे सिद्ध है। 3 जो दर्शन-ज्ञान- चरित्र-तप और वीर्य रूप आचारो से पूर्ण है, पचेन्द्रियरूपी हाथियों के मद को दलन करने वाले हैं, धीर है और गुणो मे गम्भीर हैं वे आचार्य होते है। 4. जो रत्नत्रय से युक्त हैं, जिनेन्द्र प्रणीत पदार्थो के उपदेशक है, जो इच्छारहित ऐसे भाव सहित है ऐसे उपाध्याय कहे जाते हैं। 5 जो सर्व व्यापार से रहित है, चार प्रकार आराधना मे सदा लवलीन हैं जो निर्ग्रन्थ और मोह रहित है वे साधु होते हैं। - "नियमसार' से
SR No.538048
Book TitleAnekant 1995 Book 48 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1995
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy