SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त/39 चडोभ का जिन मन्दिर ओ नमो वीतरागाय आ......द्रवि................. ना........द्यत्पादपीठ लुठन् मदार स्रग मद गुजदलि मन्निष्ठ साराविणम। तत्पाद...........वद्वच..........रमु..........ता, स.....वि........वेद्वेगमिवाकरोत्स ऋषभस्वामी श्रियेस्तात्सताम् ।। १।। विभ्राणो गुण सहति हततम स्तापो निज ज्योतिषा, युक्तात्मापि जगति सगज जय श्चक्रे सारागाणिय । उन्माद्यन्मकरध्वजोर्जितजगज ग्रासोल्लसत्केसरी, ससारोग्रगदच्छिदे स्तु स मम श्री सा (शां) ति नाथो जिन. ।। २।। जाडय सस्वद खडित क्षयमपि क्षीणाखिलोपक्षय, साक्षाद्दीक्षितमक्षिभिर्दधदपि प्रौढकलक तथा। चिन्हत्वाद्यदुपात माप्य सतत जात स्तथा नदकृच् चन्द्र सर्व जनस्य पातु विपदश्चन्द्रप्रभोर्हन्सनः।।३।। सो (शो) कानो कह सकुल रतितृण श्रेणि प्रणश्यभ्रम ....... त्मा ध्वग पूगमुद्गतमहामिथ्यात्व बातध्वनि, यो रागादि मृगोपघात कृत धी या॑नाग्निना भस्मसाद् भाव कर्मवनं निनाय जयतात्सोय जिन. सन्मतिः ।।४।। प्रसाधितार्थ गुर्भव्य पकजाकर भास्कर.। अतस्तमोपहो वोस्तु गौतमो मुनि सत्तमः । श्री मज्जिनाधिपति सद्वदनारविद, मुद्गच्छदच्छतरवो (बो) ध समृद्धगन्धम् । अध्यास्य याजगति पकज वासिनीति, ख्याति जगामजयतु सु (श्रु) त देवता सा ।। ६।। आसीत्कच्छपघात वश तिलक स्त्रैलोक्य निर्यद्यश., पाडु श्री युवराज सूनुर सम द्यदभीमसेनानुगः । श्रीमानर्जुन भूपतिः पतिरपामक्या य तुल्यता, नो गाभीर्यगुणेन निर्जित जगद्धन्वी धनुर्विद्यया ।। ७।। श्री विद्याधरदेवकार्य निरतः श्री राज्यपाल हठात, कठास्थिच्छिदनेकबाण निनहै हत्वा महत्याहवे।
SR No.538048
Book TitleAnekant 1995 Book 48 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1995
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy