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________________ अनेकान्त/4 अवस्था को प्राप्त है या फिर आशान्यूनता से क्रमश आशाशून्यता की ओर अग्रसर हैं। विलियम जेम्स के शब्दों में कहा जाय तो वह या तो पूर्ण सुखी है अथवा पूर्ण सुखी बनने के मार्ग पर अग्रसर है। अत उनके मनन से साधक भी वैसा ही बन सकता है। मन्त्रशक्ति सर्वसम्मत है। जैन परम्परा में इसे पौद्गलिक माना गया है। गोम्मटसार जीवकाण्ड की जीवतत्वप्रदीपिका टीका में कहा गया है- 'अचिन्त्यं हि तपोविद्यामणिमन्त्रोषधिशक्त्यतिशयमाहात्मय दृष्टत्वभावत्वात् । स्वभावो ऽतर्कगोचर इति समस्त वादिसम्मतत्वात् । कालिदास ने इसी तथ्य को 'अचिन्त्यो हि मणिमन्त्रौषधीनां प्रभाव' कहकर प्रकट किया है। यद्यपि जैन धर्म में मन्त्र आदि की सिद्धि का लोकमार्ग में निषेध किया है तथा मन्त्रों से आजीविका करने वाले साधु को बहु प्रताडित भी किया है। रयणसार मे कहा गया है कि जो मुनि ज्योतिषशास्त्र, अन्य विद्या या मन्त्र-तन्त्र से अपनी आजीविका करता है, वैश्यो के समान व्यवहार करता है और धनधान्यादि ग्रहण करता है, वह मुनि समस्त मुनियों को दूषित करने वाला है। तथापि परिस्थितिवश हमे मन्त्र प्रयोग की अनुमति भी दी गई है। भगवती आराधना की विजयोदया टीका में कहा गया है कि जिन मुनियो को चोर से उपद्रव हुआ हो, दुष्ट पशुओं से पीडा हुई हो, दुष्ट राजा से कष्ट पहुचा हो, नदी के द्वारा रुक गये हो तो विद्या मन्त्र आदि से उसे नष्ट करना वैयावृत्ति है। संसारी जनो के निमित्त पूजा विधान आदि धार्मिक तथा गर्भाधानादि लौकिक क्रियाओ के लिए महापुराण आदि में विशिष्ट-विशिष्ट मन्त्रो का निर्देश किया गया है। णमोकार मन्त्र दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों परम्पराओं में मान्य है। धवलाकार इसे निबद्धमगल मानते हैं। निबद्धमंगल का अर्थ है- ग्रन्थकार द्वारा रचित । इस आधार पर इस मंत्र को धवला प्रथम खण्ड के कर्ता आचार्य पुष्पदन्त की रचना मानना अभीष्ट प्रतीत होता है। यह भी संभव है कि आचार्य पुष्पदन्त ने इसे अन्यत्र से लेकर उदधृत किया हो। श्वेताम्बर ग्रन्थ महानिशीथ में कहा गया है कि पंचमगलसूत्र अर्थ की अपेक्षा तो भगवान् द्वारा रचा गया है, किन्तु सूत्र की अपेक्षा यह गणधर की रचना है। हाथीगुफा (उडीसा) शिलालेख मे ‘णमो अरहंताणं सिधाणं' पाठ भेद पाया जाता है । यह शिलालेख कलिंग नरेश खारवेल का है। कुछ लोग आजकल 'अरहताणं' पाठ को अशुद्ध बताकर केवल अरिहंताणं पाठ को शुद्ध घोषित कर रहे हैं। यह मूल आगम का अवर्णवाद है, क्योंकि हमारे दिगम्बर आगमों में अरिहंताण और 'अरहंताण' दोनो ही पाठों का खूब उल्लेख हुआ है। कषायपाहुड, महाबन्ध, मूलाचार, तिलोयपण्णत्ति धवला आदि में दोनो ही पाठ प्राप्त होते हैं। हेमचन्द्राचार्य तो प्राकृत व्याकरण के अनुसार
SR No.538048
Book TitleAnekant 1995 Book 48 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1995
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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