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अनेकान्त/2
पात्र-दान-विधि
पत्त णियधरदारे दटूणण्णत्थ वा विमग्गित्ता । पडिगहण कायव्व णमोत्थु गहुत्ति भणिऊण ।। णेऊण णियय गेह णिरवज्जाणु तह उच्चठाणम्भि । ठविऊण तओ चलणाण धोवण होई कायव्वं ।। पाओदय पवित्त सिरम्भि काऊण अच्चण कुज्जा । गध क्खाय कुसुमणे वज्जदीबधू बे हि य फले हि । पुष्कजलि खिवित्ता पयपुरओ वदण तओ कुज्जा । चइऊण अट्टरूद्दे मण सुद्धी होइ काय व्वा ।। णिट्ठर कक्कस वयणाइवजण त वियाण वचिसुद्धि । सव्वत्थ सपुडगस्स होइ तह कायसुद्धी वि।।
0 वसुनंदि श्रावकाचार २२६-२३०
पात्र को अपने घर के द्वार पर देखकर या अन्यत्र खोजकर प्रतिग्रहण करना चाहिए। अपने घर मे ले जाकर निर्दोष ऊँचे स्थान मे बिठाकर उनके चरण धोना चाहिए। पवित्र पादोदक शिर मे लगाकर अष्ट' द्रव्यो से पूजा करना चाहिए। चरणाग्र मे पुष्पाजलि क्षेपण कर वन्दना करे । आर्त रौद्र ६ यान छोडकर मन शुद्धि करना चाहिए। निष्ठुर कर्कश वचनो का त्याग करने को वचन शुद्धि जानना चाहिए। सब ओर विनीत अग रखने वाले दातार के कायशुद्धि होती है।